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मीठे कोमलवचनोंकर प्रतिबोध करा, और यह तेरा पुत्र विशेष विद्वान् है विशेषप्रतिभा सहित है विशेषसत्ववान् है, ज्यादा कह - नेसें क्या प्रयोजन है, यह जिनवल्लभ आचार्यपद योग्य है तिस कारण से इस जिनवल्लभकुं हमकों देदें यह धर्मसंबंधि देरासर मठ वगैरे सर्व तेरा है, तेरा और दूसरोंका विस्तार करनेवाला होगा, इस अर्थ में अन्यथा कुछ कहना नहिं, अर्थात् नाकारा वगेरे करना नहिं, ऐसा कहके पांचसें रुपिया जिनवल्लभकी माताके हाथमे देके, शीघ्र जिनवल्लभकुं दीक्षा दी, जिनवल्लभको दीक्षा देके, जिनवल्लभकुं जिनेश्वराचार्यजीनें सर्व व्याकरण छन्द अलंकार नाटक ग्रहगणित वगेरे निरवद्य विद्या भणाई, और जिनवल्लने भी थोडी मुदतमे अपनी बुद्धि बलसें सर्व न्यायसाहित्य ज्योतिष वैद्यक वगेरेपर सिद्धान्त रहस्यरूप सर्व विद्या ग्रहण करी,
कभी उस जिनेश्वराचार्य के गाम वगेरे जानेका प्रयोजन उत्पन्न हूवा, तब गामको जाते हुवे आचार्यनें पंडित जिनवल्लभकों कहा कि में गाम जाकर पीछा आवुं उतनें मठ देराशर ग्राम ग्रासवाडी वगेरे सबकी चिंता तेरे करणी, जितने कार्य करके में आऊं, इतने कहेने पर विनयसे मस्तक नमाकर जिनवल्लभने कहा जेसी पूज्योंकी आज्ञा है वैसाहि करूंगा, आप साहिब परमपूज्योंको कार्य करके पीछा जलदि आना, इतना कहेनेपर यह जिनेश्वराचार्य ग्रामान्तर गया, बाद में दूसरे दिनमें जिनवल्लभनें विचारा कि जो यह भंडारके अन्दर पुस्तकों से भरीभइ पेटी देखने में आवे है तो इन पुस्तकों में क्या लिखा है में देखें कारण कि जिस्से सर्वकार्य मेरे आधीन हुवा है,
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