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भावार्थ:- जो पुरुष आद्यंत मनोहर ऐसे जैनधर्मसंबंधि पुस्त - star लिखाणा अपणे धनसें करावे है और वस्त्र पूजादिकसें मनोहर ऐसा महिमा विस्तारे है, वह सद्गुरू और सिद्धान्तकी भक्ति करणेवाला मनुष्य जगत में मानणे योग्य होवे है ॥ २ ॥ सकलभरतनाथा यद्भवंतीह केचित्, त्रिदशपतिपदं यद्दुर्लभं मानयंति, यदपि गुरुदुर्गग्रंथगर्भ विदन्ति, स्फुरितमखिलमेतत्तत्कृताराधनस्य ॥ ३ ॥ भावार्थ:- इहां जो कोई समस्तभर क्षेत्रका राजा याने चक्रवर्त्त होते है और कितनेक इन्द्रपणो पावे है और कितनेक बहुतहि जादा कठिन ग्रंथोंके तत्वको जाणते हैं इये सर्व सिद्धान्तकी आराधना करणेवाले मनुष्यको फलप्राप्ति होवे है ॥ ३ ॥ इत्यादि देशना करके बहुतहि जादा उत्साहको प्राप्त हुवे, ऐसे उण श्रावकोनें श्री अभयदेवसूरिरचितअनेकसिद्धान्तकी वृत्तियांवगेरेके बहुत पुस्तक लिखवाये और प्रसिद्धिमें लाये और लिखवाके ठिकाणे ठिकाणे भंडार कराये.
वाद में औरभि उसस्थानसें पूज्यअभयदेवसूरिजी विहार क्रमसें आकर अणहिल पुरपाटनकों अलंकृत करा, निश्चय यह मी पूज्यपाद आचार्यश्रीजी कुशाग्रबुद्धिवाले सर्वसिद्धान्तपारंगामी सुविहितचक्रवर्ती युगप्रवर युगप्रवरागम संविग्नसाधुवोंके समूहमें शिरोमणी पुण्यपात्र इत्यादि अनेक प्रकारसें सर्वत्र पृथ्वीमंडल में प्रसिद्धिकों प्राप्तभये, उधरसें उससमय आसिकानामकीनगरी में रहेनेवाले चैत्यवासी कूर्चपुरीय गच्छके श्रीजिनेश्वरसूरिहोते भये,
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