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उतनें दूसरे दिनमें खबर लानेवाला मनुष्य उसने वहां आकर इसतरे खबर दीवी, के तुमारे जहाज क्षेमकुशलसें समुद्रको उलंघकर तटपर आये है, बाद में यह बात सुणके, सत्यकरके पवित्र श्रीगुरुमहाराजके वचनोंपर उत्पन्न हवा हे विश्वास जिणोंकों ऐसे उण श्रावकोंने सर्वपरिवारसहित श्रीगुरुमहाराजके पास आकर विधिपूर्वक वंदना नमस्कार करके विनय सहित हाथ जोडके इसतरे श्रीगुरूमहाराज बोले, कि हेभगवन् जहाजोमे आये हुवे क्रयाणोंसे जितनालाभ होवेगा, उसका आधा हिस्सा हमलोक सिद्धान्त पुस्तकों के लिखाणेमें लगायेंगे, वादमें आचार्यश्रीनें प्रशंसा करी, अहो श्रावको तुमलोक धन्यहो, जिणोंका मुक्तिस्त्रीके कंठका स्पर्शकरणे में हेतुभूत इसतरेका परिणाम है, यतःइह किल कलिकाले चंडपाखंडिकीर्णे, व्यपगत जिनचंद्रे केवलज्ञानहीने,
कथमिव तनुभाजां संभवेदस्तुतत्वावगम इह यदि स्यान्नागमः श्रीजिनानां ॥ १ ॥ भावार्थ - प्रचंड पाखंडियोंसें व्याप्त इस कलियुगमें निश्चय सर्वज्ञरूपी चंद्रमा अस्त होनेपर और केवलज्ञान के विछेद होनेपर इहांपर जो श्रीतीर्थंकरप्रणीत सिद्धान्त नहिं होते तो मनुष्योंकों वस्तुतत्वका बोध केसे होता ॥ १ ॥
जिनमतविषयाणां पुस्तकानां स्ववित्तैरतिशयरुचिराणां लेखनं कारयेद्यः ॥ प्रथयति महिमानं वस्त्रपूजादिरम्यं, सुगुरु समय भक्तिर्मानवो माननीयः ॥ २॥
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