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२१८ देने पूर्वक उनसवश्रावकोंको बुलवाये 'याने समाचार भेजकर खामणानिमित्त आमंत्रण करवाया' श्रीसंघ समक्ष सर्व जीव राशिके सह खामणाकर अणशण आराधना करनेका विचार किया.
वाद तेरसकी आधिरात्रिके समय शासनदेवताआई, और उस शासनदेवताने कहा, कि हे पूज्य ! आप सोए हो
१ अब इहांसे आगे श्रीकोटिकगछपट्टावलीमें इसतरे लिखे है, की 'उहां तेरसके दिन आधिरात्रिकेसमें शासनदेवीने प्रकट होके' कहा कि 'हे स्वामिन् ये नव सूतकी कोकडीको सुलझावो! तब गुरु महाराज वोले' कि हाथोंकी आंगुली गलनेसें सुलज्ञावणेकी सामर्थ्य रही नहीं, तब शासनदेवी कहने लगी अभीतक आप बहुत कालतक श्रीवीर भगवान का शासन दीपावोगे, ओर नवांगसूत्रों की टीका करोगे, इससे हे खामिन् आप रोग जानका उपाय सुनो ! स्थंभनपुरके नजीक 'सेढिका नदी के किनारे खंखर पलासवृक्षके नीचे श्रीपार्श्वनाथस्वामीकी अतिशययुक्त प्रतिमा है' उहां निरंतर एक गाय आती है ओर प्रतिमांके मस्तक पर सदा दूधकी धारा देके, चली जाती है; उसी ठिकाणे सर्वसंघके साथ आप जायके श्रीपार्श्वनाथ प्रभुकी स्तवना करना तब उहां श्रीपार्श्वनाथखामीकी प्रतिमा प्रगट होगी, जिसके स्नात्रजलके प्रभावसे आपका रोगरहित दिव्य शरीर होवेगा, ऐसा स्वप्नमें कहके देवी अदृश्य होगई. जब प्रभात समय भया, तब उहांसें विहारकरके स्थंभनपुर गये, वहांके सर्वसंघको साथ में लेके पूर्वोक्त स्थानको गये, उहां जाके नमस्कार करके जयतिहुअण इत्यादि वत्तीस काव्योंका नवीन स्तोत्र करके स्तवना करने लगे. जय "फणिफणफार फुरंतरयणकर रंजियनहयल, फलिणी कंदलदलतमाल निल्लुप्पलसामल कमठासुरउवसग्गवग्ग संसग्ग अगं जिय, जय पञ्चक्ख जिणेसपास थंभणयपुरहिअ ॥१७॥, यह सत्तरमा काव्य बोलते, श्रीपार्श्वनाथखामीकी प्रतिमा जमीनमेंसे प्रगट भई, फिर सम्पूर्ण स्तवना जब पूर्ण भई, तब सर्व संघ मिलके आनंदके साथ स्नात्र पूजा करके, भगवानका स्नात्र जल महाराजके शरीरपर सींचा कि, तत्काल रोगरहित कंचनवर्ण शरीर होगया, तब तो सर्व संघ, तथा नगरके लोक देखके वडे आश्चर्यको प्राप्त भये, और जहां प्रतिमा प्रगट भई, तहां बहोत मनोहर उंचा शिखरबद्ध मंदिर बनवाया, मंदिर तैयार होनेसें
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