________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
1
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
Acha
२३२
यसेनसूरिजीके आज्ञानुसार पट्टवर विजयतिलकसूरिजी, और विजयदेवसूरि, इनोंने गच्छमे अशुद्ध प्ररूपणाकी प्रवृत्ति करी, और विजयतिलकसूरिजी ३ वर्ष आचार्यपदमे रहे वाद वर्ग हुवे, वादमें श्रीविजयतिलकसूरिजीके पट्टमें श्रीविजयाणंदसूरिबी हुवे, जिनके नामसे आणंदसूरिंगच्छ प्रसिद्ध है, और यह आचार्य चिरंजीवी हुवे, इनोंने खगुरु आज्ञानुसार प्रवृत्ति करी, इसतरे होणेसें लघुपौशालीयतपा शाखामें दोय पाटपरंपरा भइ, गच्छमें अशुद्ध प्रवृत्ति हुइ, यह अबभी चल रहि है, यह इतिहास प्रसिद्ध है तथापि विशेष वृत्तान्त पूर्वोक्त ग्रंथानुसार जाणना और परपक्षवालोंके साथ द्वेष धरके मैत्रीभावकों दूर हटाके देवसूरिआश्रित निन्हव धर्मसा. गरनें अपणा मंतव्य पौषणेके लिये, प्रवचनपरीक्षा १ कुपक्षकौशिकादित्य २ सर्वज्ञसिद्धि, ३ कल्पकिरणावली, ४ वगेरे ग्रंथ बनाये हैं, और धर्मसागरका शिष्य विमलसागरने स्वकपोलकल्पित खरतर तपाचर्चा आदि बनाये हैं, और श्रोहीरविजयसूरिजी बगेरेके नामसें तथा अपणे नामसे कितनेक पत्र १ बोल २ काव्य ३ चरित्र ४ जम्बूदीपपन्नत्ति टीका ५ वगरे ग्रंथ नवीन अपणा पक्ष पौषणेके लिये बनाये हैं, उनके अंदर अपणी मरजी प्रमाणे पूर्वसूरियोंके नामसें अपणै सत्यवादी होणेके लिये, असल पक्ष पोषण किया है, तदाश्रित विद्वानोंने श्रीजिनचंद्रसूरिजीके साथ बैरानुबद्ध हो कर, उनके प्रच्छन्नपणे, विजयप्रशस्तिकाव्य, २ श्रीहीरसौभाग्यकाव्य २ वगेरे काव्य बनाये हैं तिनोंके अंदर कितनाक असत्य पोषण किया है, और ऋषभदाशकृत हीररास तथा लावण्यसमयकृत विमलरासमें चीतोडवासी कर्मचंदडोसी तथा विमलसाह मंत्री बगेरेके वारेमें कितनाक असत्यका पोषण किया है, और तिण पुन्यवानोंने खखकालभावि खगच्छाश्रित धर्मगुरुओंके सदुपदेशसें श्रेष्ठ धर्म कार्य किये हैं, सो तिनके, धर्मगुरुओंका नाम श्रीवर्धमानसूरिजी है, श्रीजिनमाणिक्यसूरिजी है सो क्रमसे जाणना, और श्रीहीरसूरिजी पहिले अकबरसें मिले है, वादमे कोइ कारणसें श्रीजिनचन्द्रसूरिजी अकबरसें जा मिले है, उनोने वकरीका ३ भेद, टोपीकाजीकी वसकरणा, अमावसकों चन्द्रका उगाना आदि चमत्कार दिखाये हैं, और बादसाहाको प्रतिबोध देके षट्दर्शनीयोंका कलंक दूर किया, दिहीका बादसाहका मुख्य मंत्री कर्मचंद वच्छावतके निजगुरु, सवा सोमजीको प्रतिबोधके जैनी पौरवाल श्रावक बनानेवाले, श्रीजिनचंद्रसूरिजी थे, इत्यादि शुद्धार्थ गो. पणेसें और अनेक असत्यबातोंकों ग्रन्थद्वारा पौषणेसें असत्य प्ररूपणा करणेसें और
For Private And Personal Use Only