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तरे पाटपरम्परा देखनेमे आवेहै, ऐसा किसीका कहिना है, यह भी श्रीबृहत्कल्पवृत्ति श्रीधर्मरत्नप्रकरणवृत्ति आदि शास्त्रदेखतां तो यह कहेना मिथ्या संभवे है, जैसे श्रीअभयदेवसूरिजी नवांगवृत्तिकर्तानें अपणा कुल पाटपरम्परा वगेरहवतंत्र लिखाहै, इसीतरे महातपाविरुद धारक श्रीजगच्चन्द्रसूरिजीकामी तत्पप्रभाकर श्रीदेवेन्द्रसू. रिजी तत्संतानीय श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजोनेंभी अपणा चित्रवालगच्छ, महातपाविरुद,
और स्वतंत्र पाटपरम्परा लिखी है, इस्से इनोंमे वडगच्छका गन्धभी नहिं है, इनोंके वडगच्छकी पाटपरम्परासें कोई संबंध नहिं है, तद् यथा- श्रीपद्मचन्द्रकुलपविकाशी श्रीधनेश्वरसूरिजी हुवे, श्रीचैत्रपुरमंडन महावीर प्रतिष्ठासें चैत्रगच्छ हुवा, उस गच्छमें श्रीभुवनेन्द्रसूरिजी उनके शिष्य श्रीदेवभद्रगणिजी, उनके शिष्य श्रीज. गच्चन्द्रसूरिजी और श्रीदेवेन्द्रसूरिजी, तथा श्रीविजयेन्दुसूरिजी, यह तीन महाराजश्लोकोक्तगुणसहित हुवे, श्रीविजयेन्दुसूरिजीके प्रथम शिष्य श्रीवज्रसेन सूरिजी दूसरे शिष्य श्रीपद्मचंद्रसूरिजी तीसरे शिष्य श्रीक्षेमकीर्तिसूरिजीने श्रीबृहत्कल्पसूत्रकी टीका विक्रमसंवत् १३३२ में रचि है, उसकी प्रशस्तिमें और श्रीधर्मरत्नप्रकरणवृत्ति आदिमें इस मुजब अपणा गच्छ अपणा विरुद, और अपणी गुरुशिष्यकी पाटपरम्परा लिखि है और श्रीवडगच्छीयमणिरत्नसूरेिजीका गुरुशिष्यतरीके नामभी नहिं लिखा है, इस्से जाणा जाता है कि श्रीवडगच्छके साथ श्रीचैत्रवालगच्छका कोई संबंध नहिं है, यह वात सत्य है, इस्से यह चैत्रवालगच्छ स्वतंत्र अलगहि है, और श्रीजगचन्द्रसूरिजी तत्पट्टे श्रीदेवेन्द्रसूरिजी आदि जो अनुक्रमसें पाटपरम्परा है सो इस्समें लघुपौशालीयतपा शाखा है, श्रीदेवेंद्रसूरिजीसे प्रसिद्ध भइ है, और श्रीविजयेन्दुसूरिसे जो पाटपरम्परा है, सो बृहत्पौशालीयतपा शाखा है, सो प्रसिद्ध है, यह दोनों शाखा श्रीचित्रवालगच्छकीहि है, वडगच्छकी नहिं है, और महातपाविरुद, तपागच्छ चित्रवालगच्छ, यह एकहि है, ऐसा शास्त्र देखनेसें मालूम होवे है, और श्रीशास्त्रों के अनुसार तो इसीतरे मानना उचित है, वा प्ररूपणा करणा सत्य है, और श्रीसर्वदेवसूरिजीसें लेकर श्रीमणिरत्नसूरिजीतक वडगच्छकी पाटपरम्पराकों श्रीजग• चन्द्रसूरिजीके नाम साथ लगाते हैं, सो शास्त्रके आधारसे तो मिथ्या है, और विना विचारी अंधपरम्परा है, ऐसा जाणा जावे है, और विशेष तो श्रीज्ञानी महाराज जाणे
और विक्रमसंवत् १६१२ में श्रीजिनमाणिक्यसूरिजीके शिष्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी हूवे, उससमय चित्रवालगच्छीय, अपरनाम, श्रीतपागच्छीय श्रीविजयदानसूरिजी
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