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साहकुं कहा कि यह जमीन हमारी है इसलिये हमारी भूमिकी किमत हमकुं देवो तब विमलसाहनें भूमिपर मोहोंरां विछायके जमीन लिवी प्रासाद कराया यानें देरासर कराया श्रीवर्द्धमान सूरिजी तिस प्रतिमा देरासरकी प्रतिष्ठा करी वादसांतिस्नात्र पूजा वगैरे सर्व धर्मकार्य किया उसके बाद अनागतमें धीरे धीरे सर्व मिथ्यात्वी लोक उस विमलसाह मंत्री के आधीन हूवे तब विमलसाहने ५२ देहरीसहित सोनेका कलस धजासहित तिस देरासरकुं सोभित कीया तिस देरासर में अढारे कोड तेमन लाख प्रमाणे धन लगा वह देरासर अखंडपणे अवीभि विद्यमान है सो सर्व लोक देखतें है और दर्शन तथा पूजन करते हैं यह श्रीवर्द्धमान सूरिजीका उपगार है ||
और यह श्रीवर्द्धमानसूरिजी श्रीमदुद्योतनसूरिजी के प्रथम सुशिष्य थे और श्रीजिनेश्वरसूरिजी श्री बुद्धिसागरसूरिजी के यह गुरुमहाराज होते थे और विमलसाहमंत्रीका विशेष अधिकारचरित्र तथा राससें जाणना यह प्रसंगसें संबंध कहा पीछे उहांसें विहार करके सरसापत्तनपधारे, तिस अवसरमें सोमनामा एक ब्राह्मणके शिवदाश बुद्धिदाश, नाम दोय पुत्रथे, और सरखतीनाम एक पुत्री थी, यह तीनों सोमेश्वर महादेवका बहुत ध्यान किया इससे सोमेश्वर महादेवका अधिष्ठाता आयके हाजर हुवा, कहा वर मांगो तब तीनों बोले हमकुं वैकुंठ देवो, तब देव कहनें लगा कि अभी मुझकों वैकुंठ नहिं मिला है तो तुमकों कहांसे देवं, परंतु जो तुमकों वैकुंठकी इच्छा होय तो इहांपर श्रीवर्द्धमानसू, रिजीमहाराज
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