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सावधान होके सुनों इसवक्तके मुनियोंकुं जिनभवनमे रहना ही योग्य है जिनगृहमे रहणेसे निरपवाद ब्रह्मव्रतका संभव है यतियोंके ब्रह्मचर्य ही प्रधान है और व्रतोंके सदृश अपवाद इसमें नही है, सिद्धांत ब्रह्मव्रतको सर्वव्रतोंमे निरपवाद कहा है 'न वि किंचि अणुन्नायं, पडिसिद्धं वा वि जिणवरिंदेहिं'
अर्थ || तीर्थंकरदेवने कुछ आज्ञा नही दीया है वैसा मनाभि नही किया है मैथुनकुं छोडके
उपाश्रयमें रहणेसे स्त्रीयोंका, मनोहरशब्दसुणने वगेरेसै ब्रह्मसर्वथा नही पाशके मानसिक विकारादि संभवसे स्त्रीजनका मधुरशब्दसुणना रूपदेखना कोकिलादिकका मधुरबोलना इत्यादि कारणोंसे भुक्तभोगि यतियोंकु पूर्वानुभूत संभोग स्मरणमें आवे अभुक्त भोगियोंकु कुतूहल प्रगट होवे और साधुवों का किया भया निरंतर कानोंको अमृत सरीखा स्वाध्याय ध्वनि सुणके कितनेक साधुवोंका शरीरका लावन्यदेखके प्रोषितपतिवाली वनितावोंकी रमणेका इच्छा वगेरे प्रगट होवे इसतरह परस्पर निरंतररूपका देखना गीत श्रवणादिकसै दुर्जयमन्मथके जोरसै चारित्रनाशादि अनेक दोषोंकि पुष्टि होती है कहा है || गाथा ||
थीवजिअं वियाणह, इत्थीणं जत्थठाण स्वाणि । सद्दाय न सुचंती तापियतेसिं न पिच्छंति ॥ १ ॥ बंभवयस्सअगुत्ती, लज्जानासोय पीइबुढीअ । साहु तवोधणनासो, निवारणा तित्थपरिहाणी ॥ २ ॥ अर्थ ॥ साधुवोंकों स्त्रीयोंका वेठणा रूपदेखणा शब्दका
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