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२०६ विमलमंत्री गुरुका वचन अंगीकार करके गुरूको साथ लेके आबुजी आया, तब उहांके रहीस ब्राह्मण और जोगी लोक या बात सुनके विमल मंत्रीको कहने लगे कि यह हमारा तीर्थ है, अभी हमारा मंदिर है तुमारा मंदिर नहिं है, इससे जैनमंदिर नहिं होने देवेंगें, तव गुरुमहाराज एक पुष्पमाला मंत्रके विमलमंत्रीके हाथमें दीनी, और कहाकि ब्राह्मणोंसे कहोकि ये सदैवसें जैनका तीर्थ है, जो न मानो तो तुमारी कोइ कन्याके हाथमें यह फूलमाला देवो, और डूंगर ऊपर फिरो जिस ठिकाणे तुमारी कन्याके हाथसें यह फूलमाला गिरपडे वहां हमारा तीर्थ, और देव है, इसीतरे करा ॥ जहां फूलमाला पडी उहां पूजाका उपगरण सहित तीन प्रतिमा प्रगट भइ ॥
१ श्री आदिनाथस्वामि २ अंबिकादेवी ३ चवालीनाथ क्षेत्रपाल ॥ ऐसी तीन प्रतिमाकों प्रगट हुइ देखके ब्राह्मणलोक बडे आश्चर्यकों प्राप्त भए, तथापि ब्राह्मण जातिपणासें कहने लगे तुमारा देव है तो देवकी पूजा करों, परन्तु मंदिर होनेसें तो हम मरमिटेंगे, तब बडा दयाल उत्तम पुरुष विमलमंत्रीने विचार किया कि ये कोण गिणतीमें है, अभी मंदिर बना सक्ताहूं, परन्तु ये भिक्षुक है, इनकों क्या जोर देखाउं, इससे इनोंकों बहोतसा द्रव्य देके, राजी करके जैनमंदिर तैयार कराउं, ऐसा विचारके ब्राह्मणोंकों बहुतसा धन देके राजी किये, पीछे बहुमोला मकराणेंका पत्थर मंगवायके, बडा एक बावन जिनालय मंदिर बनाया, और सारे मंदिरमें ऐसी झीणी कोरणी कराई, जिस
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