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परमेष्ठीका स्मरण करति हुइ वा मरुदेवा महत्तरा देवलोकगई, और महर्द्धिक देव हुवा, इहांसें कोइएकश्रावक युगप्रधान कानिवेकरणे श्री गिरनारपर्वत ऊपरजायके विचार किया कि यह सिद्धिक्षेत्र अधिष्ठायकसहित हैं, इससे अंबिकादिदेवताविशेष, जोमेरेकुं युगप्रधान कहेगा याने बतावेगा तो में भोजन करूंगा, अन्यथा में भोजन नहिं करूंगा, ऐसा साहसको अवलंबन करके रहा, उपवास करणा सरुकिया, इसअवसर में महाविदेहक्षेत्र में श्रीतीर्थंकरकुं नमस्कार करणेवास्ते गये हूवे, ब्रह्मशांतियक्षकों, उस मरुदेवा नामक महत्तराका जीवदेवने संदेशादिया, जैसे तेरेकुं, श्रीजिनेश्वरसूरिजी के सन्मुख यह कहेगा, तथाहि
मरुदेवीनाम अज्जा, गणणी जा आसि तुम्ह गच्छंमि । सगंमी गया पढमे, जाओ देवो महिडीओ ॥ १ ॥ टक्कलयंमि विमाणे, दुसागराऊसुरो समुत्पन्नो, समणेसस्स जिणेसरसृरिस्स इमं कहिजासि ॥ २ ॥ टक्कउरे जिणवंद्णनिमित्तमेवागएण संदिहं । चरणमि उज्जमो भे, कायचो किंच सेसेहिं ॥ ३॥
अर्थ महत्तरापद धारणेवाली मरुदेवीनामकीसाध्वी तुमारे गच्छ में थी, वा मरुदेवी प्रथमदेवलोकगई है, उन मरुदेवीका जीव महर्द्धिक देव हुवा है || १ || टक्कल नामक विमान में, दोय सागरके आयुवाला देव उत्पन्न हूवा है, संपूर्ण साधुवोंका मालिक श्रीजिनेश्वरसूरिजीकों यह कहेणा || २ || टकोरनामक नगर में श्रीतीर्थ
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