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महतियाण, गोत्र हुवा, ये महतियाण गोत्रवाले, या तो भगवानकों नमस्कार करे, या अपनाधर्माचार्य श्रीजिनचंद्रसूरिजी गुरुकों नमस्कार करे, और किसीकों नमस्कार न करें, और महाराजके उपदेश बादशाहभी बहुतसरलपरिणामीहुवा, बहुत देशमें पर्यपणादिपर्वदिनों में, बहुतजीवहिंसा छोडाई, इसमाफक धर्मका उद्योतक, बडे प्रतापीक, संवेगरंगशाला प्रकरण, दिनचर्या आदि अनेक प्रकरण कर्त्ता श्रीजिनचंद्रसूरिजी भए, वेभी श्रीमहावीर स्वामिदर्शित धर्मको यथार्थपणे प्रकाशन करके और अंतसमें सिद्धान्तीय विधिपूर्वक अणशण करके समाधिसहित स्वर्ग निवासी हुवे, यह श्रीजिनचंद्रसूरिजीका यहां पर चरित्र संक्षिप्तमात्र कहा है
|| ४२ ॥ श्रीजिनचंद्रसूरिके पट्टपर छोटे गुरु भाइ, श्री अभयदेवसूरिजी विराजमान हवे, इनका संबंध संक्षिप्तमात्र लिखता हूं, धारापुरीनगरी में 'धन्नानामें सेठ जिसके धनदेवीनामें स्त्री उनके अभयकुमार नाम पुत्र हुवा क्रमसे ( सर्व कला शीखके ) युवान अवस्थाकों प्राप्त भया, तब एकदा प्रस्तावे श्रीजिनेश्वरसूरिजी विचरते भए, धारापुरीनगरीमें पधारे, जब नगरके सर्वलोक महाराजकों वंदना करने गए तब अभयकुमारभी अपने पिताके साथ दर्शनको गया, श्रीजिनेश्वरसूरिजी महाराजके मुखसे धर्म उपदेश सुणके वैराग्यकों प्राप्तभया, संसारकों असार जाणके दीक्षा ग्रहणकरी, क्रमसें बुद्धीके वलसें, सकल शास्त्र पढके आचार्य पदक प्राप्तभये, एकदा व्याख्यानमें शृंगारादिनवरसोंका बहुतपोषणकरा, तब सबसभा बहुतआनंदकों प्राप्तभइ, परंतु
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