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१९१ होणेसे इत्यादिक कहके बंभवयस्स अगुत्ती इहां तक यतियोकुं परघरमे रहणेसे दोषकहा सो अव विकल्पपूर्वक विचारते हैं ॥ सुनो ॥ जो यहपरगृहवसतिदूषणकहा तुमने वो क्या सर्वदा है या इसवक्तहीहै प्रथमपक्ष सर्वदा तव उद्यानादिकमे रहते यतिजनोकुं चौरादिउपद्रवका कैसे प्रतिकारहोय इसपर ऐसा न कहना उससमयमें काल सुखकारीथा सो चौरादिउपसर्ग नहीहोताथा इस्सै उद्यानमेनिवाससुनतेहै, परघरमे रहना नहीहै इति । उत्तरकहते है उसवक्तभि तस्करादि उपद्रव अनेकधा सुणनेसैं और उसकालमेंमि मुनियोंकुं परगृहका आश्रय आगममे कहाहै सो कहते हैं । ___ नयराइएसु घिप्पइ, वसही पुवामुहं ठवियवसहं इत्यादि ३ वृषभ कल्पनासे स्थापित नगरादिकमें यतियोंकों वसतिकी गवेषणा करणा नगर वगेरे विना ऐसी वसति नही संभवे
और उद्यानमे रहनाही उसवक्त मान्यथा तब ठिकाने ठिकाने नगर गाममें रहणेका पाठ नहि बने इसलिये प्रथमवि उपाश्रय परघरमे रहना यतियोंकाथा सो पहला पक्ष नहि वना, अब दूसरा पक्ष अंगीकारकरोगे तो हम पूछते है किस कारणसे साधुवोकुं परघरमे रहना नहि कल्पे जो स्त्री संसक्तादिकसे न कल्पे ऐसा कहोगे तो यह तो पहलेभि वनाथा उसवक्तभि स्त्रीरहित वसतिमिलनेसे या नहिं मिलनेसे कथित यतना सिवाय और समाधिनहीं है वैसा इसवक्तभि आश्रय करलेणा न्याय सदृशहै कहा है यतना करणेवाले ख्यादिसंसक्तस्थानमैं इसवक्तभि ब्रह्मचर्य अगुप्ति
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