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मिलेतो तपकी वृद्धि होवै मिलेतो देहका रक्षण होवै ॥ १ ॥ इसलिये कभी आधा भोजन मिले कदाचित् उपवासभी होता है तब राजा आनंद और विषाद सहित बोले आप कितने साधु हैं पुरोहित बोला हे देव ! सर्व अष्टादश (१८) साधु है राजा बोले एक हाथीका भोजन पिंडसे तृप्त होवेंगें जिनेश्वरसूरि बोले हे महाराज ! पिंड मुनियोंकों नहि कल्पे, यह प्रथमहि कहा है सिद्धांत पठनपूर्वक आपके आगे, तब राजा 'अहो अत्यंत निस्पृही है ऐसा जाणके, प्रीतियुक्त बोले मेरा पुरुष आगे चलेगा सुलभ भिक्षा होगी जादा कहनेसै क्या, इसप्रकार से वाद करके चैत्यवासियोंको जीतके राजा मंत्रवी सेठ सार्थवाह वगेरे नगरके प्रधान पुरुष सहित भट्टजनवसतिमार्गप्रसाधन यशके काव्य कहते हुवै पाया खरतरविरुद जिणुनें ऐसे श्रीवर्द्धमानसूरिसहित जिनेश्वरसूरि वसतिमे प्रवेश कीया ऐसे गुर्जरदेशमे प्रथम चैत्यवासीयोंका पक्ष निराकरण करके भगवत् प्रोक्त वसतिमार्ग प्रवर्त्तन प्रथम जिनेश्वरसूरिने कीया ॥ खरतर विरुदका अर्थ लिखते है
॥ अथ खरतरशब्दस्य व्युत्पत्तिर्लिख्यते ॥
॥। १ अतिशयेन खरा अनर्मछद्मधर्मव्यवहारपटवो ये ते खरतराः || २ 'अतिशयेन खरा सत्यप्रतिज्ञा ये ते खरतराः ' ॥ ३ खः सूर्यः तद्वत् राजन्ते निःप्रतिमप्रतिभा प्राग्भारप्रभाभिः प्रतिवादिविद्वज्जनसंसदि ये ते खराः, अत एव तरन्ति भवाब्धिमिति तराः, खराश्च ते तराश्च खरतरा:
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