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और दूसरा कोई उपाय इणोंको निकालनेका करणा चाहिये, एसा कहके, मनमे शोचा कि यह राजा अपनी मुख्य राणीको बहुतहि मानताहे, इसलिये जो वह राणी कहेगी वैसाहि राजा करेगा, तिस राणीके द्वाराहि इणोंको निकालना चाहिये, यह अपणा आशय उन चैत्यवासी मुनियोंने राजाधिकारि अपणे भक्त श्रावकोंकुं कहा, वादमें वे राजाधिकारी श्रावक आम्रफल केलफल दाख वगेरे फलोंका भाजन प्रधान वस्त्र दागिना वगेरे बहुत पदार्थोंका भेटणा लेके राणीके पास गये और मुख्य राणीके आगे जिनप्रतिमाकी तरे सन्मुख बलीकी रचना करी और मुख्य राणी प्रसन्न होके जितने उणोंका प्रयोजन करणेमे तत्पर भइ, उसीअवसरमे राजाकुं राणीके पासमे कोइ कामकी जरूरत पड़ी, वादमे दिल्लीसंबंधी आदेशकारी पुरुषको राजाने तिस मुख्य राणीकेपास भेजा और कहाकि यह अमुक कार्य राणीसे कहो, तब आदेशकारी पुरुष बोलाकी हे देव अभि जायके कहेता हूं ऐसा कहके शीघ्र गया, राजासंबंधी प्रयोजन राणीकू कहा बहुत अधिकारियोंको और अनेक प्रकारका चढावा देखके तिस राजपुरुषने विचाराकि जो दूसरे देशसें आये हुवे आचार्य उणोंको निकालनेका उपाय यह होवे है, परंतु मेरेकुंभि स्वदेशसें आये हूवे आचार्यके पक्षकी पुष्टि राजाके सन्मुख कहेना, ऐसा विचारके राजाके पासमे गया, राजासंबंधी प्रयोजन कहा, परंतु हे देव वहां राणीकेपास बडा कौतुक मेने देखा, राजाने कहा कैसा ? भद्रिकपुरुष बोला हे देव! राणी आज तीर्थकरकी प्रतिमा सदृश
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