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निच्छयओपमाणजुत्ता खुड्डुलिआए वसंति जयणाए
इत्यादि प्रमाणयुक्त छोटे उपाश्रयमेंभी जयणासे मुनि निश्चयसै रहै और भी सुनो, जिनमंदिरमें रहनेका समर्थन आत्माको बहुतअनर्थकारिहोनेसे योग नहीं सिद्धांतमें चैत्यमें रहना अत्यंतआशातनाका कारणहोनेसे मुनियोंकुं मनाकियाहै आशातना थोडीभी भवभ्रमणवृद्धिकाकारणहोणेसे अपथ्यसेवनवत् होतीहै ऐसा आगम है दुभिगंधमल० १ जइविन अहाकम्मं० २ आसायणमिच्छत्तं० ३, इत्यादि साधुका शरीर मेलसहितहोवे इसलिये मंदिरमेंरहणेस आशातनाहोवे यद्यपि चैत्य आधाकर्मी न होवे तथापि रहणेका निषेधहै, कारण आशातना करणेसे मिथ्याल होता है, इसवास्ते कथंचित् आधाकर्मी उपाश्रयमें निवासभि सिद्धांतमे कहा है, जिनघरनिवासतो अत्यंत निषेध होनेसे नहि करणा उचितहै, इसकारणसे उपाश्रयमें रहणा प्राप्तहुवा वैसा प्रयोग है-यतियोंकुं परघरमें निवास करणा निःसंगता प्रगट होणेसे संयमशुद्धिहेतुखात् शुद्धआहारग्रहणवत् ऐसा, यद्यपि पूर्वपक्षिने चैत्यमें रहे सिवाय रक्षा होवे नहि तथा तीर्थविच्छेद होवे इत्यादि कहके चैत्यमें रहना स्थापा वोमि विचार नहिं सहसक्ता है, केवल लोकों ठगना प्राय है, यतः तीर्थ अव्यवच्छेद किसकुंकहते है क्या यतियोकुं मंदिरमें रहणेसे भगवानका मंदिर प्रतिमा वनेरहै १ अथवा शिष्यप्रशिष्यादिपरंपराका विच्छेद न होना सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्रकीप्रवृत्तिरहना कहते है २ प्रथम पक्ष नहि बनता है चैत्यवासविनाभि तीर्थकरोंके विंबादिककी अनुवृत्ति देखणेसे जैसे पूर्वदेशमे जिनप्रतिमाकुं कुलदेव
१३ दत्तसूरि०
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