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समुहसे भक्षितहोणेसे दिखाते है उद्यानमे रहते भये यतीयों नवीन आंबेकीमंजरीकेस्वादसैं पंचमस्वरउच्चारण करते कोइल का शब्दसुणनेसैं और मालती वगेरे पुष्पोंका सुगंध लेणेसैं समाधियुक्तचित्तवालोकाभि चित्तविक्षेपहोता है कोइलका बोलना सुगंधग्रहणादि मदनोद्दीपन विभावसैं भारतादिशास्त्रोंमें कहा है, और क्रीडा करणेकुं आये कामीजनोंके आणेसे स्त्रीपरिचयादिकमें क्या कहणा है अथवा निरंतरनवीन नवीन शास्त्राभ्यास करणेवाले मुनियोंकों स्त्रीपरिचयादि दोष न होवे तथापि लोकोंके संचार विना उद्यानमे रहते मुनियोंका चोर वगेरेस वस्त्रादिलेणेका संभव है शरीरओरसंयमविराधनाका प्रसंगहोवै, 'वादि कहते है युगंधराचार्य ओरवज्रस्वामी वगेरह उद्यानमे समवसरे है ऐसा आगमप्रमाण है, इसपर पूर्वपक्षी कहता है यहकथनसत्यहै परंतु अनापात असंलोकगुप्त एक द्वार उद्यान विषय है ऐसा इसवक्त प्राय राजा चोर वगेरेसे वाधित होणेसे मिलना दुर्लभ है सो केसे इस समयके मुनिजनोको कल्पे इसलिये इस अवसरमें जिनमंदिरमें हि साधुवोंकुं निवास ठीक मालुमहोता है कारण जिनमंदिरमें आधाकर्मादिदोषनहीहोता है प्रयोग देते है इदानींतन मुनियोंके रहने योग्य जिनमंदिर है, आधाकर्मादिदोषरहितहोणेसे, निर्दोष आहारवत् , इहां असिद्ध हेतु नही है जिनप्रतिमाके लिये बनाया मंदिरमें आधाकर्मादि दोषका अवकास नहीं है यतिकेवास्ते मकान वणावेतो आधाकर्मी होवेहे और सुनो मुनि जिनमंदिरमें नहीं रहे तब इसवक्त जिनमंदिरोकी हानी होवे कारण पहले
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