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र होणेमे हमारामाबाद श्रीवर्द्धमान हुवा और आपका
१८६ वास्त्री ३ इणोंकुं तांबूल खाणा गौमांसवत् है ॥१॥ स्नान १ पीठी २ तैलकामईन ३ नखकेशादिकका संस्कार ४ धूप ५ माला ६ सुगंध ७ इत्यादि ब्रह्मचारि छोडते हैं ॥२ ऐसा वचन आचार्यका सुनके विचक्षण लोकोंके हृदयमें हर्षउत्पन्न हुवा और श्रीवर्द्धमानसूरिजीपर बहुमान भया वाद श्रीवर्द्धमानसूरि बोले आचार्योंके साथ विचार होणेमे हमारा शिष्य सूरिजिनेश्वर जो उत्तर प्रत्युत्तर देवेगा वो हमारे प्रमाण है तब सब सभासदोंने कहा ऐसा होवो तदनंतर चौराशी आचार्योंमें प्रधान चैत्यवासी सूराचार्य बोले अहो राजा मंत्रि प्रमुख सर्वलोको जो हम कहते हैं सो सुनो तब मंत्रिवगेरे चैत्यावासियोंके पक्षपाति कहने लगे आप कहिये हमलोक सावधान होके सुनते हैं बाद दुर्लभ राजा उस वक्तमें सब चैत्यवासी आचार्य साध्वाभास चकचकायमान समारा हुवा मस्तकमें केश जिणुके ताम्बूल रससे रंगा भया होठ ऐसे उद्भट वेषवाले सुगंध पुष्पोंकी माला जिणोने पहरी ऐसे धूपित शुभ्र रेशमी वस्त्रपहरे हैं, ऐसोंको देखके विचार किया अहो विलास सहित चेष्टावाले यह लोक विटप्राय अपणे कल्पसे च्युत हैं और देखो ये विदेशि महानुभाव उत्तम स्वभाववाले नीचे आसनपर बैठे भये लोच कियाहुवा मस्तकमें जिणुने मलीन वस्त्र पहरे हैं, जिणोंके दर्शनमात्रसैहि मालूम होता है शांततायुक्त तपनिष्ठमूर्ति निश्चय जो कोई गुणयुक्त शरीरी तीन जगतमें पूजनीय महाशीलवतपात्र कहे जाते हैं, वै येही महाव्रती हैं ऐसा राजा विचारते है उतने सूराचार्यने पूर्वपक्षकहा जैसे 'अहो वसतिनिवासी श्रमणो !
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