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श्रीसूराचार्य प्रमुख (८४) चोरासी आचार्यो सूर्योदयमेंहि आयके अपणे अपणे आसनों पर बेठे, और राजाके प्रधानपुरुषोंने श्री दुर्लभमहाराजाकोंभि बुलाये तत्र श्रीदुर्लभराजाभि बहुत पुत्र और सेवकादिकके परिवार सहित आयके वहां सभा में बैठे उसके बाद पुरोहितकुं राजाने कहा हे पुरोहित ! मान्यवर देशान्तरसें आयें सुविहित आचार्यकों जलदि बोलावो अनंतर पुरोहित शीघ्र जाकर श्रीवर्द्धमानरिजीकों वीनति करी हे भगवन् ! पंचासरसंज्ञक चैत्यमें सर्वचैत्यवासी आचार्य परिवारसहित आयके बैठें हैं श्रीदुर्लभमहाराजाभि आये हैं और श्रीदुर्लभराजाने सर्व आचायकुं नमस्कार करके और ताम्बूल देके सत्कार किया है और ra आपके आगमन की राह देखतें हैं
यह वृतांत पुरोहितके मुखसें सुणके पूज्यपाद श्रीवर्द्धमान सूरिजी श्रीसुधर्मस्वामि श्रीजंबुखामिप्रमुखचवदपूर्वधारियोंकुं युग प्रधानोकुं दूसरे सर्वसुविहित आचार्योकुं हृदय कमलके वीचमे विचारके अर्थात् स्मरण करके, पंडितजिनेश्वरगणि प्रमुख कितनेक गीतार्थ श्रेष्ठ साधुवकों साथ लेके चले पंचासरसंज्ञक चैत्यके सन्मुख, कन्या गाय शंख भेरी दही फल पुष्पमाला वगेरे सन्मुख आते हुवे मंगलरूप अनुकूल श्रेष्ठ सकुन देखनेसें संभावित हे सिद्ध प्रयोजनजिनके ऐसे श्रीवर्धमानसूरिजी वगेरह वहां सभा में पोहोचे और पंडित श्रीजिनेश्वरगणिजीका विछाया कंबल पर और श्रीदुर्लभ राजानें देखाया जो योग्य स्थान वहां बैठे. बाद पंडित श्रीजिनेश्वरगणिजीभि श्रीगुरुमहाराजकी आज्ञासें
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