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श्रीगुरुमहाराजकुं नमस्कार करके श्रीगुरुमहाराजकेचरणकमलोंके पासही बैठे गुर्वाज्ञा पालनेके लिये, इसअवसरमें राजा ताम्बूल देनेके वास्ते प्रवर्तमान हुवा तब सर्व सभासमक्ष श्रीवर्धमान सूरिजी बोले हे महाराज ! जैन सिद्धांतमें मुनियोंको ताम्बूल भक्षण स्नान करणा पुष्पमाला पहेरना सुगंध पदार्थलगाना नख केश दांतका संस्कार करना मना किया है. बाद-संजमे सुद्धि अप्पाणं० लहुभूय विहारिणं० ॥ १० ॥ दशवैकालिक सूत्रके तीसरे अध्ययनसें ५२ अनाचीर्ण सुनाये तब राजा बोला ताम्बूल खानेमें क्या दोष है आचार्य ने कहा कामराग बढानेवाला ताम्बूल है यह जगत् प्रसिद्ध है कहाभी है श्लोक - ताम्बूलं कटु तिक्तमुष्णमधुरं क्षारं कषायान्वितं । वातनं कफनाशनं कृमिहरं दौगंध्यनिर्नाशनम् । वक्रस्याभरणं विशुद्धिकरणं कामानिसंदीपनं । ताम्बूलस्य सखे! त्रयोदश गुणाः स्वर्गेऽपि ते दुर्लभाः ॥ १ ॥
अर्थ || हे मित्र ! तांबूलके १३ गुण है कडवा १ तीखा २ मधुर ३ उष्ण ४ क्षार ५ और कषाय रससहित ६ वायु ७ कफका नाशक ८ कृमिमिटानेवाला ९ दुर्गधनाशक १० मुखका आभरण ११ शुद्धिकारक १२ कामानिका दीपक १३ इसलिये ब्रह्मचारियोंकुं तांबूल खाणा रागबुद्धिका हेतु होणेसै सम्यक् नही है स्मृतिमेभि कहा है ॥ ब्रह्मचारियतीनां च विधवानां च योषिताम् । तांबुलभक्षणं विप्र ! गोमांसान्न विशिष्यते ॥ १ ॥ स्नानमुद्वर्त्त - नाभ्यंगं, नखकेशादिसंस्क्रियाम् । धूपं माल्यं च गंधं च त्यजति ब्रह्मचारिणः || २ || अर्थ हे ब्राह्मण ! ब्रह्मचारी ९ यति २ विध -
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