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१८२ राजाके सन्मुख जिस स्थानमें आपलोक कहेंगें वहां पर वाद विषयी विचार करणेकुं तयार हैं सुविहित मुनियो शोभन धर्ममार्ग प्रगट करणेवास्तेहि विशेष कष्टयुक्त ग्राम नगरादिकोंमें विहार करते हैं सर्वत्र देश परदेशमें विचरतें हैं और श्रेष्ठ धर्ममार्ग प्रगट करणेका मुख्य कार्य है इसलिये परिश्रम करते हैं सो राजाके सामने आपलोकोंके साथ वै सुविहितमुनियों वादविषयीविचार करणेमें अत्यंत उत्कंठा सहित हैं इसवास्ते आपलोकोकुं विलंब करणा नहीं शूराचार्यप्रमुखोंके सन्मुख पूर्वोक्त प्रमाणे पुरोहितके कहेणेके अनंतर हि अपणे पंडितपणेका गर्वकरके उण सर्व शूराचार्य प्रमुख चैत्यवासी मुनियोंने आपणे मनमे विचारा कि सर्व राजाधिकारी लोक जबतक हमारे वसमें हैं तबतक उण परदेशी मुनियोंसें हमकुं क्या भय है अर्थात् किसितरेका भय नहि है - एसा विचारके चैत्यवासी आचार्योंने पीछा प्रत्युत्तरमें पुरोहितकुं कहाकि हे पुरोहित राजाके सन्मुख सुविहित मुनियोंके साथ वाद विषयि हमारा विचार होवो अर्थात् सद्धर्म विषयिवाद हमलोक करेंगें उसके अनंतर पुरोहितने चैत्यवासी शूराचार्य प्रमुखके वचन अंगीकार किये और शूराचार्य प्रमुख प्रतिपक्षियोंने कहाकि अमुक दिनमें पंचासरा संज्ञक वडे देहरासरमें सद्धर्म विषयी वाद विचार होगा एसा निश्चयकरके सर्वलोकोंके आगे कहा और पुरोहितनेभि एकांतमे राजाकुं कहा हे राजन् इहांके रहेनेवाले मुनियो परदेशसें आये हुवे सुविहित मुनियोंके साथ सद्धर्मविषयि वादविचार करणा चाहते हैं वह सद्धर्मविषयि
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