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चर पुरुष इहांपर आये हैं उणोंकों रहेणे वास्ते मकान क्या तुमने दीया है ऐसा राजाका वचन सुनके पुरोहितनें कहा कि किसने यह दूषण उत्पन्न किया है जो वे मुनि लोक परदेशी चर पुरुष हैं तो किंबहुना बहुतकहणेसें क्या प्रयोजन है, जो वे श्वेताम्बर मुनियोंपर यहदूषणसत्य है तो उणोंके तरफसे में जमानत में एकलाख द्रव्यकी किंमतवाली पटी याने वस्त्र देताहुं ऐसा राजसभामे सर्वलोकोंके सामने कहके अपणे पासका १ लाख किमत वाला वस्त्र राजसभामे सर्व लोकोंके सन्मुख डाला परंतु किसिकी हिंमत न हुइके उस वस्त्र कुं लेवे और जो मैरे घरमें रहे हुवे मुनियोंमें दूषणका गंधभि होवे तो दोषारोपणकरणेवाले या कहेणेवाले इस पटीकुं उठावो ऐसा कहकर पुरोहित चुपका हूवा उसके बाद वहां राजसभामें बहुतचैत्यवासियोंके भक्त मंत्री श्रेष्ठि प्रमुख प्रधान पुरुष बैठेथे परंतु किसीने भि उस पटीकुं उठाही नहिं उसकेवाद राजाके आगे पुरोहितने कहाके हेदेव
न विनापरवान, रमते दुर्जनो जनः, श्वेव सर्वरसान् भुक्त्वा विनाऽमेध्यं न तृप्यति॥१॥ महतां यदेव मूर्धनि तदेव नीचाश्रयाय मन्यन्ते ॥ लिंगं प्रणमंति बुधाः, काकः पुनरासनी कुरुते ॥२॥
व्याख्या-जेसे कुत्ता सर्व रसका भोजनकरकेमि विष्ठा विना. धाये नहिं इसीतरह दुर्जन मनुष्यभी निंदा किये विना संतोष पावे नहिं ॥१॥ मोटा पुरुषोंके जो वस्तु मस्तक उपर धारण लायक होती है उसकुं नीच पुरुष अपणा नीच आश्रय माने है जैसे
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