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व्याख्या - जैसें रत्नका दीपक तेल बत्ती पात्र कि अपेक्षा विनाहि प्रकाश करता है तैसें हि उत्तम मनुष्य निरंतर लोकोंके हितमे तत्पर होते है इसतरे कहते हूवे श्रीजिनेश्वरगणिजी अपणे गुरु पास गये और सर्ववृत्तान्तकहा, वृन्तान्तसुणके श्रीगुरुमहाराजनेंभि शुभायति विचारके कहा कि इसीतरे करणा उचित अवसर है ऐसा कहे वहां पर रहे. अपणी धार्मिक क्रियाकरणेमें तत्पर ऐसे मुनियोंकी वार्ता नगरमें फेलीके शुद्धवसती रहेणेवाले मुनियों इहांपर आये हैं, पुनः साध्वाभास साधु नहिं पण साधुके नामसें ओलखाणेवाले ऐसे चैत्यवासी मुनियोंने सुणाके शुद्धवसती वासी इहांपर मुनि आये हैं ऐसा सुणनेके अनंतर हि एकट्ठे होकर सर्व उण चैत्यवासी मुनियोंने विचार करणा सरु किया कि अहो जो शुद्धवसतीवासी मुनि इहांपर आये हैं सो अच्छा नहिं है कारणके यह मुनि तो सुविहित हैं और निरंतर आगममें कहेमुजब क्रिया करणेवाले हैं और चैत्यवासका निषेधकरणेवाले हैं और अपणे लोक स्वच्छंदाचारि हैं सिद्धांतसे विरुद्ध चारगतिरूपसंसारमे गिरानेवाले देवद्रव्यके लेनेवाले हैं निरंतरएक ठिकाणे रहेनेवाले हैं कामकुं उन्मत्त करणेवाले तांबूलकं निरंतरखानेवाले हैं चित्रसहितविचित्र प्रकारका हिंडोला खाट पलंग गादी तकिया गालमसूरिया इत्यादि शृंगारकी चेष्टाओं प्रगटकरणेकरके नटविटकीतरे महा विलासकरणेवाले हैं इत्यादि कहणेपूर्वक यह मुनि अपणे आत्माकं वृत्तिकरके लोकों में सर्वोत्कृष्टधर्मिपणे देखावेंगे और अपणेहूं
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