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पंडित पुरुष लिंगकुं नमस्कार करते हैं और काग उसकुं आसन बनाकर ऊपर बैठता है || २ || इस वास्ते हे राजन् मैरे घरमें जो कोई मुनि रहे हैं वे मूर्तिमान धर्मके पिंड सरीखे हैं और क्षमा दम सरलता कोमलता तप शील सत्य शौच निष्परिग्रहपणा वगैरे गुणोंरूपी रत्नका करंडीया सरीखे कोई जीवकुंभी संताप देवे नहिं तो फिर इसलोक परलोकमें विरुद्ध अकार्य वे मुनि किसतरह करेंगे, वास्ते उणोंमे दूषण लेशमात्र भी नहिं है, परंतु यह दुष्टत कोई पापी पुरुषों का किया हुवा है, वाद राजाके चित्तमें यह कथन रुचा और कहाके हे पुरोहित तुम जिसतरह कहे है उस तरह सर्व संभव है वाद राजा और पुरोहितका विचार सुणके सर्व सूराचार्य वगैरेंने विचार किया जो इण परदेशी मुनियोकुं वादमें जीत निकाल देवै तब ठीक होवैगा ऐसा विचारके अनंतर सूराचार्य वगेरेंने पुरोहितकुं बुलायके कहा हे पुरोहित तुमारे घरमें रहेनेवाले मुनियोंके साथ हम वादविषयि विचार करना चाहते हैं तब पुरोहितने कहा श्वेताम्बरवसतिवासी मुनियोकुं पूछके तुमकुं में कहुंगा बाद पुरोहित अपणे घरजाके श्रीवर्द्धमानसूरिजी पंडित श्रीजिनेश्वरगणि भगवानको कहाकि आप श्रीके प्रतिपक्षी श्रीपूज्यों के साथ विचार वाद विषयी करणा चाहतें हैं तब पुरोहितकुं प्रत्युत्तर में कहा कि हे पुरोहित क्या अयुक्त है जो प्रतिपक्षियोंकी इच्छा है तो हम भी इसीहि प्रयोजन वास्ते यहां पर आयें हैं परंतु हे पुरोहित सूराचार्य प्रमुखकुं कहेणा- जो आपलोक सुविहित मुनियोंके साथ वाद करना चाहते हो तो श्रीदुर्लभ
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