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सर्वठिकाणे 'अनाचारी हैं, ऐसा कहके ओलखावेंगे इसलिये जबतक यह व्याधि कोमल है तबतकहि इसका विनाशकरणा चाहिये इसतरे चैत्यवासियोंने अपणे अनाचारकी शंकासे बहुत विचार करके एक उपाय सोधाके अपणे इहां राज अधिकारियोंके पुत्रोंकू भणाते हैं इसकारणसें अधिकारीलोक आपणे कहे प्रमाणे करेगे उसकेवाद राजअधिकारियोंका मनरंजन करके उण राजअधिकारीयोंके मुखसें विदेशी मुनियोंपर असत् दोषारोपण करके इणमुनियोंका विनाशकरें जैसा विचारके उस पूर्वोक्त कारणसें चैत्यवासियोंने अपणे विद्यार्थी राजाधिकारियोंके पुत्रोंकू बुलाये और उणोंको खजूर दाख वरफ वगेरे पदार्थ देके लोभित किये और उण विद्यार्थियोंकुं चैत्यवासियोंने कहा कि तुम लोकोंमें असे कहोकी परदेशसें कोई श्वेताम्बर साधुके वेषमें श्रीदुर्लभ राजाके राज्यका छिद्र देखणेवाले चरपुरुष इहांपर आये हैं बाद विद्यार्थी बालकोंने वेसाहि किया उसके अनंतर वह वार्ता जलके अंदर तैलके बिंदुकीतरह सर्वनगरमें फेली और राजसभामें भि आई, अनंतर श्रीदुर्लभराजानेभि कहाकि अहो जो इसतरेके क्षुद्र और कपटी श्वेताम्बर मुनिके वेषसे आये हैं तो उनुकों रहेणेवास्ते मकानकिसने दीयाहै वहां राजसभामें रहे हुवे किसी पुरुषने कहा के हेदेव ! आपके हि पुरोहितने उणोंकों अपणे घरमे रखें हैं उसके बाद दुर्लभ राजाने कहा कि पुरोहित कुं बुलावो तब पुरोहित कुं बुलाया और पुरोहित कुं कहाकि हे पुरोहित श्वेताम्बर मुनियोंके रूपकों धारणेवाले जो परदेशी
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