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१७२ जो कोइ वि दूसरे देशमें जायके सत्यमार्गका प्रकाश नहिं करें तो जाणे हुवे जैनधर्मका क्या विशेष फल है ? और सुणतें हैं कि बहुतवडागुजरातदेश है परंतु वह देश चैत्यवासी आचार्यों करके भराहूवाहै इसवास्ते जो वहां पर जाणाहोवेतो बहुतकल्याणकारी है तिसके बाद श्रीवर्द्धमानमरिजीने कहा कि यह तुमाराकहणा बहुत अच्छा है परंतु अच्छा शकुन निमित्त वगेरे देखके कार्य करणा अच्छा है वादशुभशकुन निमित्तादिक देखा और अच्छाशकुन निमित्त वगेरे हूवा उसके बाद भामहसार्थवाहके बृहत सथवाडे साथ श्रीवर्द्धमानमरिजी महराज श्रीजिनेश्वरसूरिजी श्रीबु. द्धिसागरसूरिजी आदि १८ साधुवोंके सहित गुजरातदेश अणहिलपुर प्रति चले अनुक्रमकरके एकपल्ली में आये वहां स्थंडिलगये हुवे पंडित श्रीजिनेश्वरमरिजीसहित श्रीवर्द्धमानसूरिजी कुं सोमध्वजनामका जटाधारी मिला उसके साथ ज्ञानगोष्टि हुइ उसके बाद सर्वोत्कृष्टगुण देखके श्रीआचार्य महाराजनें प्रश्नोत्तर कहे यथा
का दौर्गत्यविनाशिनी हरिविरिंच्युग्रप्रवाची च को, वर्णः को व्यपनीयते च पथिकैरत्यादरेण श्रमः, चंद्रः पृच्छति मंदिरेषु मरुतां शोभाविधायी च को, दाक्षिण्येन नयेन विश्वविदितः को भूरि विभ्राजते ॥१॥ व्याख्या-दरिद्राताका नाश करनेवाली कौण है, विष्णु और ब्रह्माका उत्कृष्ट प्रकारसें कहेणेवाला कोण अक्षर है, मुसाफर घणे आदर पूर्वक कोणसा परिश्रम दूर करते हैं, सोमध्वज नामक ब्रह्मचारी पूछे है कि देवताओंके मंदिरां पर शोभा करनेवाली कौण है,
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