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१६८ प्रभाकर गामानुगाम अप्रतिबंध विहार करके विचरते हुवे श्रीआबुगिरि शिखर की तलहटीमे, कासद्हनामकगाममें आये, तिसके अनंतर श्रीविमलदंडनायकपोरवाडवंशकामंडन देशभागकुं अवगाहन करता हूवा याने साधता हूवा वो मि वहांपर आया, आबुगिरि शिखर पर चढा, सर्व दिशाओंमे पर्वतकुं मनोहर शोभासहित देखके बहुत खुशी हूवा, मनने विचारणे लगा कि, इहांपर देरासर करावें, उतने अचलेश्वर गुफावासी योगी जंगम तापस संन्यासी ब्राह्मण प्रमुख मिलके विमलसाहदंडनायक के पासमे आय के इसतरे कहने लगे, हे विमलमंत्रिन् तुमारा इहांपर तीर्थ नहिं है यह हमारा कुलपरंपराकरके तीर्थ वर्तेहैं, इसवास्ते इहांपर तुमकुं हम जिनप्रासाद करणे देवें नहिं तब विमलसाह मंत्री पूर्वोक्त वचन सुणके उदासीन हवा, आबुगिरिशिखरकी तलहटीमें कासद्रहगाममें आया, जिसगाममें सर्वसंपदादायकश्रीवर्द्धमान सरिजी समवसरे है,
उसी गाममें श्रीगुरुमहाराजकुं विधिपूर्वक वंदना नमस्कार करके इसतरेसे विनयसहित वीनती करी, हेभगवन् इस पर्वतपर हमारा तीर्थ जिन प्रतिमारूप वर्ते है अथवा नहिं, तब श्रीगुरुमहाराजनें कहा हे वत्स देवता आराधन करणेसै सर्व जानने में आवे, अन्यथा छमस्थकेसें जाणे, तब विमलसाह मंत्रीने प्रार्थना करी, किंबहुना सुज्ञेषु, तब श्रीवर्द्धमान सूरिजीने छमासी तप करा तब श्रीधरणेंद्र नागराज आया, श्रीगुरुमहाराजनें कहा हे धरणेंद्र मूरिमंत्रकी अधिष्ठायक ६४ देवियां है, उणोंके अंदरसें एक
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