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करा तय तीनसौ छात्रोंके साथ दीक्षा लीनी ११ ॥ इसीतरे श्रीमहावीर भगवंतके वैशाख शुदि इग्यारसके दिन मध्यपापानगरीके महासेन वनमे (४४०० ) शिष्य हुये, तिस पीछे राजपुत्र, श्रेष्ठिपुत्रादि, तथा राजपुत्री, श्रेष्टिपुत्री, राजाकी राणीयों आदिकने दीक्षा लीनी । तथा जब भगवंत श्रीमहावीरजी पावापुरीमें मोक्ष गये, तिसीही रात्रिके प्रभातमें इंद्रभूति, अर्थात् गौतम गणधरकों केवल ज्ञान हुआ । तब इंद्रोंनें निर्वाण महोच्छव करके, ग्यानका उच्छव करा,
और सुधर्मास्वामीजीकों श्रीमहावीर स्वामीजीका पट्टऊपर बैठाया। श्रीगौतमस्वामीजीको पट्ट इसवास्ते न हुवा कि, केवलज्ञानी पुरुष कोई पाट ऊपर नहीं बैठता है, क्योंकि केवली तो जो पूछे उसका उत्तर अपने ज्ञानसेंही देता है, परंतु ऐसा नहीं कहता है, कि मैं अमुक तीर्थकरके कहनेसे कहता हूं, इसवास्ते केवलज्ञानी पाट ऊपर नहीं बैठता है, जेकर बैठे तो तीर्थकरका शासन दूर हो जावे, यह कभी हो नहि शक्ता, जो अनादि रीतिको केवली भंग करे, इसवास्ते श्रीगौतमस्वामीजी केवलज्ञानी था, इस्सें पट्टऊपर नही बैठे, और श्रीसुधर्मास्वामी बैठे ॥ ___ श्री सुधर्मास्वामी पचास वर्ष तो गृहस्थावास ( घरमें ) रहे, और तीस वर्ष श्रीमहावीर भगवंतकी चरण सेवा करी, जब श्रीमहावीरस्वामी निर्वाण हुआ, तिस पीछे बारावर्ष तक छमस्थ रहे, और आठ वर्ष केवली रहे, क्योंकि श्रीमहावीरस्वामी मोक्षगयेके पीछे केवली होकर वारावर्ष श्रीगौतमस्वामीजी जीते रहे, और श्रीगौतमस्वामीजीके निर्वाण पीछे, श्रीसुधर्मास्वामीजीकों केवलज्ञान हुआ। केवली होकर
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