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नगरीके बलश्रीराजाने अपने राज्यसें बाहिर निकाल दीया, तब तिस रोहगुप्तनें कणाद नामा शिष्य करा, उस्को १ द्रव्य, २ गुण, ३ कर्म, ४ सामान्य, ५ विशेष, ६ समवाय, इन षट् पदार्थोंक। खरूप बतलाया, तब तिस कणादनें वैशेषिक सूत्र बनाये तहांसे वैशेषिक मत चला ॥
१७ श्रीवज्र स्वामीके पाट ऊपर श्रीवज्रसेन सूरि बैठे, वे दुर्मिक्षमें श्रीवज्रस्वामीके वचनसें सोपारक पत्तनमें गये, तहां जिनदत्तके घरमें ईश्वरी नामा तिसकी भार्याने लाख रूपकके खरचनेसें एक हांडी अनकी रांधी, जिसमें विष (जहर ) डालने लगी, क्योंकि उनोंने विचारा था कि अन्न तो मिलता नहीं तिसवास्ते जहर खाके सर्व धरके आदमी मरजायेंगे तिस अवसरमें श्रीवज्रसेनसूरि तहां आये, वो उनकों कहने लगे कि तुम जहर मत खाओ कलकों सुगाल हो जावेगा तैसेंही हुआ तब तिन शेठके चार पुत्रोने दीक्षा लीनी तिनके नाम लिखते हैं:-१ नागेंद्र, २ चंद्र, ३ निवृति, ४ विद्याधर, तिन चारोंसें स्वस्व नामके चार कुल बने यह वज्रसेनसूरि नववर्ष तक गृहस्थावासमें रहे और (११६) वर्ष समान साधुव्रतमें रहे, तथा तीन वर्षे युग प्रधान पदवीमें रहे सर्वायु (१२८) वर्षकी भोगके श्री महावीरस्वामीसे (६२०) वर्ष पीछे स्वर्ग गये, तथा श्री वनस्वामी और वज्रसेन सरिके बीचमें, आर्य रक्षित सूरि तथा श्रीदुर्बलिकापुष्यसूरि, यह दोनों युग प्रधान हुये, श्रीमहावीरस्वामीसें (५८४) वर्ष पीछे गोष्टा माहिल सा.
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