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आराम वगेरे प्रतिबंध करके वशमे करूं तो मेरे कल्याण है एसा विचारके उस गुरुने वैसाहि किया तथापि उस पुण्यात्माका चैत्यवासस्थितिमे मन नहिं लगा, यह संगत है और कहा है किदुर्गंध और कादेवाला मरेहुवे कालेवरों करके सहित सेंकडो बगलों की पंक्तिसहित और बगलोंका कुंटुंब करके सहित उत्तम जातिवाले पक्षियोंके आगमनसें रहित एसे कुत्सित सरोवरमें क्या हंस पगमात्र रख सक्ता हैं अर्थात् नहिं रख सक्ता है, इसलिये उस पुण्यवान् जीव• चैत्यवाससे विमुख जाणकर वर्द्धमान मुनिळू सर्व अपणा अधिकार देकर इसतरे बोला कि हे वत्स यह सर्व देवमंदिर मठ आरामवाडी वगेरे तेरे आधीन है तुं अपनी इच्छा करके विलस तेरे सर्वोत्कृष्ट माननीय है सो हमकू छोडणा नहीं इत्यादिक अनेक कोमल वचन कहेने पूर्वक नीवारण करणेसे किया है वांछितार्थका दृढनिश्चय मनमें जिसने एसा वह वर्द्धमान मुनिः कमल जलकादेसे अलग रहेता है इस न्यायकरके जैसे तैसें कोई पण सुविहित गुरुकू अंगीकार करके मेरेकुं अपणा हित करणा है एसा दृढसंकल्प करके अपणा आचार्यकी आज्ञा लेकर कितनेक यतियोंसें परवरा हुवा दिल्ली वादलीप्रमुख स्थानोंमे आया तिस समे श्री उद्योतनसूरिजी नामके सुविहित आचार्य महाराज याने उनके पुण्यसे प्रेरित होकर आवे उसमाफक प्रथमहि विहारक्रमसें आये हुवे थे, तिसके अनंतर शुद्ध मार्गके तत्त्वका आकर श्री उद्योतन सूरिजी महाराजके चरणकमलोंमे श्रीवर्द्धमान सूरिजीने श्रेष्ठ निर्णयपूर्वक स्वपरहित बढानेवाली उपसंपत् विधिपूर्वक अंगीकार
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