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१४९ तमां निन्हव हुवा, तथा श्रीमहावीरस्वामीसें (६०९)वर्ष पीछे श्रीकष्णमूरिका शिष्य शिवभूति नामें था, तिसनें दिगंबर मत प्रवृत्त करा, सो अधिकार विशेषावश्यकादिकोंसें जान लेना ॥ - १८ श्रीवज्रसेन सूरिके पाट ऊपर श्रीचंद्रसरि बैठा, तिनके नामसें गच्छका तीसरा नाम चंद्रगच्छ हुआ ।
१९ श्रीचंद्रसरिके पाट ऊपर श्री सामंतभद्रसरि हुये, सो पूर्व गत श्रुतके जानकार थे ॥
२० श्रीसामंतभद्रसूरिके पाट ऊपर, श्रीदेव सूरि हुये, तथा श्रीमहावीरस्वामीसें (५९६ ) वर्ष पीछे कोरंट नगरमें तथा सत्यपुरमें नाहडमंत्रीने मंदिर बनवाया, प्रतिमाकी प्रतिष्ठा जजक सूरिने करी, प्रतिमा श्रीमहावीरस्वामीकी स्थापन करी जिसकों "जयउ वीरसचउरिमंडण कहते हैं । ____२१ श्रीवृद्धदेवसूरिके पाट ऊपर श्रीप्रद्योतनसूरि हुये ॥
२२ श्री प्रद्योतन सूरिके पाट ऊपर, श्रीमानदेवसरि हुये, इनके सूरिपद स्थापनावसरमें दोंनों स्कंधोंपर सरस्वती और लक्ष्मी साक्षात् देख के यह चारित्रसें भ्रष्ट हो जावेगा ऐसा विचार करके खिन्न चित्त गुरुकों जानकें गुरुके आगे ऐसा नियम करा किभक्तिवाले घरकी भिक्षा और दूध, दही, घृत, मीठा, तेल, अरु सर्व पकानका त्याग कीया, तब तिनके तपके प्रभावसें नाडोल पुर (जो पालीके पास है ) तिसमें १ पद्मा, २ जया, ३ विजया, ४ अपराजिता, ए चार नामकी चार देवी सेवा करती देखी,
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