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कोइ मूर्ख कहने लगा कि ए आचार्य स्त्रीयोंका संग क्यों करता है तब तिन देवीयोंने तिसकों सिक्षा दीनी, तथा तिसके समयमें तिक्षिला नगरीमें बहुत श्रावक थे तिनमें मरीका उपद्रव हुआ तिसकी शांतिकेवास्ते श्री मानदेव मूरिने नाडोल नगरीसें शांतिस्तोत्र बनाकर भेजा ॥
२३ श्री मानदेवसरिके पाट ऊपर श्री मानतुंगसूरि हुये, जिनोंने भक्तामर स्तवन करके, बाण अरु मयूर पंडितोंकी विद्या करकें चमत्कृत हुआ जो वृद्ध भोजराजा तिनको प्रतिबोधा, और भयहर स्तवन करकें नागराजाकों वश करा, तथा भत्तिभरेत्यादि स्तवन जिनोंनें करे है॥
२४ श्रीमानतुंगसूरिके पाट ऊपर श्री वीरसरि बैठे सो वीरसूरिने श्री महावीरस्वामीसे (७७० ) वर्षमें तथा विक्रम संवतके तीनसौ वर्ष पीछे नागपुरमें श्रीनमिअहंतकी प्रतिमाकी प्रतिष्ठा करी, यदुक्तं ॥ आर्या ॥ "नागपुरे नमिभवन, प्रतिष्ठयामहितपाणिसौभाग्यः ॥ अभवद्वीराचार्य, स्विमिः शतैः साधिकः राज्ञः ॥ १॥" .. २५ श्री वीरमूरिके पाट ऊपर श्री जयदेवसरि बैठे, ॥
२६ श्रीजयदेवमूरिके पाट ऊपर श्री देवानंदसूरि बैठे, इस अवसरमें श्रीमहाबीरस्वामीसें (८४५) वर्षे पीछे बल्लभी नगरी भंग हुइ, तथा (८८२ ) वर्ष पीछे चैत्येस्थिति, तथा (८८६) वर्ष पीछे ब्रह्मद्वीपिका शाखा हुई।
२७ श्रीदेवानंदमूरिके पाट ऊपर श्री विक्रममूरि बैठे ॥
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