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जयपुर पत्तनसें निकलकर, विंध्याचलकी विषम जगामें गाम वसाकर रहने लगा, और खात्रखनन, बंदिग्रहण रस्तेमें लूटनादि, अनेक तरेंकी चोरीयोंसें अपने परिवारकी आजीविका करता था, एक दिन पांचसौ चोरोंको लेकर राजगृह नगरमें जंबूजीके घरकों लूटनें आया, तहां जंबूस्वामीनें तिसको प्रतिबोध करा, तब तिसनें पांचसौ चोरोंके साथ दिक्षा श्रीजंबूस्वामीजीके साथ लीनी. इत्यादि जंबूस्वामीजीका और प्रभवस्वामीजीका अधिकारजम्बूचरित्र, तथा परिशिष्टपर्वादिग्रंथोंसें जानलेना. प्रभवस्वामी तीसवर्ष गृहस्थ पर्याय, चौमालीश वर्ष व्रतपर्याय, तथा एकादश वर्ष युगप्रधान पदवी, सर्व पंचाशी वर्षकी आयुपूरी करके श्रीमहावीरस्वामीसें पचहत्तर वर्ष पीछे स्वर्ग गया ॥
४ श्रीप्रभवस्वामीके पाट ऊपर, श्रीशय्यंभव स्वामी बैठे, जिनोनें मनक साधुकेवास्ते दशवैकालिक सूत्र बनाया, तिनकी उत्पत्ति ऐसें है एकदा प्रस्तावें प्रभवस्वामीनें रात्रिमें विचार करा कि मैरे पाट ऊपर कौन बैठेगा, पीछे ज्ञान बलसें अपणे सर्वसंघमें पाट योग्य कोई न देखा, तब परदर्शनीयोंको ज्ञान बलसें देखने लगा, तब राजगृह नगरमें शय्यंभवभट्टकों यज्ञकरते हुयेकों अपने पाट योग्य देखा, पीछे प्रभवस्वामी विहारकरकें, सपरिवारसें राजगृह नगरमें आये, उहां दो साधुओंकों आदेश दीया कि तुम यज्ञपाडेमें जाकर भिक्षाके वास्ते धर्म लाभ कहो, और यज्ञ करने वालोंकों ऐसे कहो-"अहोकष्टमहोकष्टं तत्वं विज्ञायते नहि" तब तिन साधुओंनें पूर्वोक्त गुरुका कहना सर्व
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