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१३६ कुछमी नहीं जानता केवल उंचा बोलके हमारे कानोंको पीडा देता है, तब गोप कहने लगे, हे वृद्ध तुम बोल ? पीछे वृद्धवादी अवसर देखके कच्छा बांधकर तिन गोपोंकी भाषामें कहने लगे, और थोडे थोडे कूदनेंभी लगे, जो छंद उच्चारा सो कहते हैं "नविमारिये नविचोरियें, परदारागमण निवारिये ॥ थोडाथोडादाइयें, सग्गि मटामटजाइयें ॥१॥ फेरभी बोले, और नाचने लगे॥ छंद। कालो कंबल नीचोवट्ट, छाछे भरिओ दीवड थट्ट ॥ एवड पडीओ नीले झाड, अवरकिसोछे सग्ग निलाड ॥ २॥ यह सुनकर गोप बहुत खुशी हुये और कहने लगे कि वृद्धवादी सर्वज्ञ है इसनें कैसा मीठा कानोंकों सुखदायी हमारे योग्य उपदेश कहा और मुकुंद तो कुछ नहीं जानता, तब मुकुंदजीने वृद्धवादीकों कहा कि हे भगवन् ! तुम मुझकों दीक्षा देकें अपना शिष्य बनावो, क्योंकि मेरी प्रतिज्ञाथी, के जो गोप मुझे हारा कहेंगे, तो में हारा
और तुमारा शिष्य बनूंगा, यह सुनकर वृद्धवादीने कहा, कि भृगुपुरमें राजसभाके बीच तेरा मेरा वाद होवेगा, परंतु यह गोपोंकी सभामें वादही क्या है, तब मुकुंदने कहा, मैं अवसर नहीं जानता आप अवसरके ज्ञाता हो इसवास्ते मैं हारा पीछे वृद्धवादीने राजसभामें उसको पराजय करा, तब मुकुंदने दीक्षा लीनी, गुरुने उनका नाम कुमुदचंद्रजी दीया, पीछे जब आचार्य पदवी दीनी, तब फिर सिद्धसेन दिवाकर नाम रक्खा, पीछे वृद्धवादी तो
और कहींकों विहार कर गये, और सिद्धसेन दिवाकरकों सर्वज्ञ पुत्र ऐसा विरुद दीया ऐसा विरुद बोलते हुए अवंती नगरीके
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