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१४५ चौवीसवर्ष व्रत पर्याय तथा छयालीश वर्ष युगप्रधान पदवी सर्व मिलकर एकसौ वर्षकी आयु भोग श्रीमहावीरस्वामीसें दोसौ एकानवे (२९१) वर्ष पीछे स्वर्ग गये, ॥ ११ ॥
॥ १२ ॥ श्रीआर्य सुहस्तिसूरिके पाटऊपर, श्रीसुस्थित सूरि हुवा तिनोनें क्रोडोंवार सूरिमंत्रका जापकरा, इसवास्ते गच्छका कोटिक, ऐसा दूसरा नाम श्रीसंघनें रक्खा, क्योंकि श्री सुधर्मास्वामीसें लेकर दशपाटतक तो अणगार निग्रंथगच्छ नाम थापीछे दूसरा कोटिक गच्छनाम हुवा ॥
॥१३॥ श्री सुस्थितरिके पाट ऊपर श्री इंद्रदिन्नमरि हुआ, इस अवसरमें श्री महावीरस्वामीसें चारसौ त्रेपन (४५३) वर्ष पीछे गईमिल्लरा जाके उच्छेद करणेवाला, दूसरा कालिकाचार्य हुआ, इसकी कथा कल्प सूत्रमें प्रसिद्ध है, और श्रीमहाबीरखामीसें (४५३) वर्ष पीछे भृगुकच्छ ( भडोंचमें) श्रीआर्य खपुटाचार्य विद्याचक्रवर्ती हुआ, इनका प्रबंध श्रीप्रबंधचिंतामणिग्रंथ, तथा हारिभद्री आवश्यककी टीकासें जान लेना, और (४६०) वर्ष पीछे आर्यमंगु, वृद्धवादी, पादलिप्त तथा कल्याण मंदिरका कर्ता ऊपर जिसका प्रबंध लिख आये सो सिद्धसेन दिवाकर हुआ, जिनोंने विक्रमादित्यकों जैनधर्मी करा सो विक्रमादित्य श्री महावीरस्वामीसें (४७०) वर्ष पीछे हुआ, सो (४७० ) वर्ष ऐसे हुए है-जिस रात्रिमें श्रीमहावीरस्वामीजी निर्वाण हुए, उस दिन अवंति नगरीमें पालक नामा राजाकों राज्याभिषेक हुआ, यह पालक चंद्रप्रद्योतनका पोता था
१० दत्तसूरि०
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