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हैं, पीछे उपाध्यायने यज्ञस्थंभ उखाडके अर्हतकी प्रतिमा दिखाई और कहा कि यह प्रतिमा जिस देवकी है, तिस अर्हतका कहा हुआ धर्म जीवदया रूप तत्व है, और यह जो वेद प्रतिपाद्य यज्ञ हैं वे सर्व हिंसात्मक रूप होनेसें विडंबना रूप है, परन्तु क्याकरें जेकर हम ऐसें न करें तो हमारी आजीविका नहीं चलती है, अब तूं तत्व जानले और मुझको छोड दे, अरु तूं परमार्हत होजा, क्योंकि मैंनें अपने पेटके वास्ते तुझको बहुत दिन बहकाया है, तब शय्यं भवने नमस्कार करके कहा तूं यथार्थ तत्व के कहने से सच्चा उपाध्याय है, ऐसा कह कर शय्यं भवने तुष्टमान होकर यज्ञकी सामग्री जो सुवर्णपात्रादि थे, वे सर्व उपाध्यायकों दे दीये, और प्रभवस्वामीके पास जाकर तत्व का स्वरूप पूछकर दीक्षा लेलीनी, शेष इनका वृत्तांत परिशिष्टपर्वादि ग्रंथसे जान लेना शय्यंभवस्वामी अठाईस वर्ष गृहस्थावास में रहे, इग्यारह वर्ष सामान्य साधु व्रतमें रहे, और तेवीस वर्ष युगप्रधानाचार्य पदवी रहे, इसीतरें सर्वायु वाशठ वर्ष भोगवके श्रीमहावीर भगवंत अठानवें वर्ष पीछे स्वर्ग गये ||
५ श्रीशय्यं भवस्वामीके पाट ऊपर यशोभद्र स्वामी बैठे, सो बावीश वर्ष गृहस्थावास में रहे, और चौदहवर्ष व्रतपर्याय में रहे, अरु पचास वर्ष तक युगप्रधान पदवी में रहे, इसीतरें सर्वायु छासी वर्ष का भोगके श्रीमहावीरस्वामीसें ( १४८ ) वर्ष पीछे स्वर्ग में गये |
६ श्रीयशोभद्रस्वामी के पाट ऊपर, श्री संभूतविजय स्वामी बैठे,
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