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देवानदाकी खसे भगवानकों करसंपुटमें ग्रहण करके, क्षत्रियकुंड ग्रामानगरके विषे, इक्ष्वाकुवंशी, सिद्धार्थनामें राजा, जिसके त्रिशला नामें पट्टराणी, जिसकी कुखमें मिति आशोजवद १३ के दिन अवतारण किया । और त्रिशला माताकी कुखसें पुत्रीकों अपहरण करके, देवानंदा ब्राह्मणीकी कूखमें संक्रामण किया । इसीतरे हरणेगमेषी देवता इंद्रकी आग्या करके अपने स्थानक गया (और) जिसबखत देवतानें देवानंदाकी कुखसें त्रिशला क्षत्रियाणीकी कुखमें संक्रामण किया, तब देवानंदायें तो अपना १४ स्वप्ना त्रिशला क्षत्रियाणीकेपास जाता हुवा देखा, और त्रिशला क्षत्रियाणीनें प्रगटपणें १४ स्वमा मुखमें प्रवेश होता देखा । पीछे सर्व दिशा सुभिक्षसमें, मिति चैत्र शुद्ध १३ के दिन, उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे, जन्म कल्याणक हुवा। उसी वखत, ५६ दिशा कुमारीयों मिलके सूतिकामहोच्छव कीया । पीछे ६४ इंद्र मेरु पर्वत पर भगवानकों ले जायके, जन्म महोच्छव कीया । तिस पीछे सिद्धार्थ राजायें १० दिवसपर्यंत मोटो महोच्छव करके, सर्व न्याती गोती प्रजागणकों मनसा भोजन करायके, सर्वके सन्मुख, श्री वर्द्धमान कुमर नाम स्थापन कीया । नाम स्थापनका यह हेतु हे, कि जब भगवान् गर्भमें आया, तब सिद्धार्थ राजा धनसें राज्यसें परिवारसें बहुत बघता रहा, इससे वर्द्धमान कुमर नामदिया । तथा इंद्रादिक देवतावोंनें मेरु पर्वत पर भगवानका जन्म महोच्छव करने के समय अनंत वली देखके, महावीर नाम स्थापन किया ॥ केशरी सिंह लंछन, पीतवर्ण, शरीरका प्रमाण ७ हाथ हुवा तीन
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