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कृष्णकों ईश्वरावतार माना होय, और उस समयकों पांच हजार वरष हुआ होय, तो इस वातकों पांच हजार वरष हुआ होगा। ___ इसी तरे ६३ तेसठ शिलाका पुरुषोंका दृष्टांत इहां नाममात्र लिखा है । इन सर्वका विस्तारसे संबंध देखना होय, तो श्री हेमाचार्यजी महाराजकृत तेसठ शलाका पुरषोंका चरित्रादिकसे देख लेना ॥ ___ और जितने कालमें २४ भगवान हुए हैं, उतनें कालमें इग्यारै रुद्र हुए हैं, जिनका किंचित संबंध लिखता हूं ॥
॥अथ ११ रुद्र नाम, गति विचार लि०॥ १ श्री ऋषभदेव स्वामीके वारे, महारुद्रपरणामका धरनेवाला मीमबल नामें पहला रुद्र हुआ, अंतमें मरके सातमी नरक पृथ्वीमें गया ।। इति ॥ २ श्री अजितनाथ स्वामीके वारे जितशत्रु नामें दूसरा रुद्र हुवा, सो अंतमें मरके सातमी नरक पृथ्वीमें गया । इति २॥ ९ श्री सुविधिनाथ स्वामीके वारे, रुद्रवल नामें तीसरा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ १० मा श्रीशीतलनाथ स्वामीके वारे, विश्वानर नामें चोथा रुद्र हुआ। अंतमें छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ ११ मा श्री श्रेयांशनाथ स्वामीके वारे, सुप्रतिष्ठनामें पांचमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ १२ मा श्री वासुपुज्य स्वामीके वारे, अचल नामें छठा रुद्र हुआ । अंतमें मरके छठी पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥१३ मा श्री विमलनाथ स्वामीके वारे, पुंडरीक नामें सातमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें
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