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१०५ गया ॥ इति ॥ ७॥ १४ श्री अनंतनाथ स्वामीके वारे, अजितधर नामें आठमा रुद्र हुआ । अंतमें मरके पांचमी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ ८ ॥ १५ मा श्री धर्मनाथ स्वामीके वारे, अजितबल नामें नवमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके चोथी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ १६ मा श्रीशांतिनाथ स्वामीके वारे, पेढाल नामें दशमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके चोथी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति १० ॥ २४ मा भगवान् श्री महावीरस्वामीके वारे, सत्यकी नामें इग्यारमा रुद्र हुआ । अंतमें मरके तीसरी पृथ्वीमें गया ॥ ये इग्यारमा रुद्र लोकीकमें बहुत मान्यताको प्राप्त हुआ थका है, इससें इनका इहां किंचित विस्तारसें दृष्टांत लिखते हैं ।
॥अथ ११ मा रुद्र सत्यकी दृष्टांत लि० ॥ विशाला नगरीके, चेटक राजाकी छठी पुत्री सुज्येष्टा नामा कुमारी कन्याने दिक्षा लीनीथी, अर्थात् जैन मतकी साध्वी हो गई थी, वो किसी अवसरमें उपाश्रयके अंदर सूर्यके सन्मुख आतापना लेती थी, इस अवसरमें पेढाल नामा परिव्राजक अर्थात् संन्यासी विद्यासिद्ध था, सो अपनी विद्या देनेकेवास्ते पात्रपुरषकों देखता था । और उसका विचार ऐसा था, कि यदि ब्रह्मचारणीका पुत्र होवे तो सुनाथ होवेगा । तब तिस संन्यासीने, रात्रीमें सुज्येष्टाको, नग्नपणे शीतकी आतापना लेतीकों देखा, तब धुंध विद्यासे अंधकारमें अचेत करके उसकी योनीमें अपने वीर्यका संचार करा, तिस अवसरमें सुज्येष्टाकों रुतु धर्म आगयाथा इसवास्ते गर्भ रह गया, तब साथकी साध्वीयोंमें गर्भकी चर्चा
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