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विधिसे सत्यकी विद्या साध रहा था । उहां कालसंदीपक विद्याधरभी आगया, और चितामें काष्ट प्रक्षेप करके सात दिन रात्रीतक अग्नि बुझनें न दीनी, तब सत्यकी इसीतरे सात दिन वामें अंगूठेसें खडा रहा, ऐसा सत्यकीका सत्य देखके रोहणी आप प्रगट होकर काल संदीपककों कहने लगी कि मत विघ्नकरक्यों कि में इस सत्यकीके सिद्ध होनेवाली हुं, इसवास्तेमें सिद्ध हो गई हुं, तब रोहणी देवीने सत्यकीकों कहा, कि में तेरे शरीरमें किधरसें प्रवेश करूं, सत्यकीनें कहा मेरे मस्तकमें होकर प्रवेश कर, तब रोहणीने मस्तकमें होकर प्रवेश करा तिस्से मस्तकमें खड्डा पडगया, तब देवीने तुष्ट मान होकर तिस मस्तककी जगों तीसरे नेत्रका आकार बना दिया, तब तो सत्यकी तीन नेत्रवाला प्रसिद्ध हुआ, पीछे सत्यकीने सोचा कि पेढालने मेरी माता राजाकी कुमारी बेटी साध्वीकों विगाडा हे । ऐसाशोचकर अपने पिता पेढालकों मार दिया, तब लोकोंने सत्यकीका नाम रुद्र (भयानक) रख दिया, क्यों कि जिसने अपना पिताकों मार दिया उससे और भयानक कौन है । पीछे सत्यकीने विचारा कि काल संदीपक मेरा वैरी कहां है, जब सुना कालसंदीपक अमुक जगा में है, तब सत्यकी तिसके पास पोहचा । फेर कालसंदीपक विद्याधर तहांसे भाग निकला, तोमी सत्यकी तिसके पीछे लगा, तब कालसंदीपक हेठे ऊपर भागता रहा, परंतु सत्यकीनें उसका पीछा न छोडा, फेर कालसंदीपकने सत्यकीके भुलानेवास्ते तीन नगर बनाये, तब सत्यकीने विद्यासें तीनों नगरभी जला दीये,
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