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इनोका संबंध जैसे है कि-जब भगवंत श्रीमहावीरस्वामीकोंकेवलज्ञान हुआ, तिस अवसरमें मध्यपापा नगरीमें, सोमल नामा ब्राह्मणने यज्ञ करनेका आरंभ करा था, और सर्व ब्राह्मणोंमें श्रेष्ठ विद्वान जानकर इन पूर्वोक्त गौतमादि इग्यारैही उपाध्यायोकों बुलाया था । तिस समय तिस यज्ञ पाडाके ईशान कूणमें महासेन नामा उद्यानमें, श्रीमहावीर भगवंतका समवसरण, रत्न सुवर्ण रौप्यमय क्रमसें तीन गढसंयुक्त देवोंने बनाया तिसके बीचमें बैठके भगवंत श्रीमहावीरखामी उपदेश करने लगे, तब आकाश मार्गके रस्ते सैंकडों विमानोमें बैठे हुये चार प्रकारके देवताओ भगवंत श्रीमहाबीरस्वामीके दर्शनकों और उपदेश सुननेकों आते थे, तब तिनों यज्ञ करनेवाले ब्राह्मणोने जाना कि, यह देव सर्व हमारे करे हुये यज्ञ की आहुतीयों लेने आये हैं, इतनेमें देवता तो यज्ञ पाडेकों छोडके भगवानके चरणों में जाकर हाजर हुये, तथा और लोकभी श्रीमहावीर भगवंतका दर्शन करके और उपदेश सुनके गौतमादि पंडितोंके आगे कहने लगे, कि-आज इस नगरके बाहिर सर्वज्ञ सर्वदर्शी भगवान आये हैं, नतो उसके रूपकी कोई तारीफ कर सक्ता है, अरु न कोई उसके उपदेशसें संशय रहता है, और लाखों देवता जिनोके चरणोंकी सेवा करते हैं, इससे हमारे बड़े भाग्योदय है, जो ऐसे सर्वज्ञ अरिहंत भगवंतका हमने दर्शन पाया, ऐसा जब गौतमजीने सुना कि, सर्वज्ञ आया, तब मनमें ईर्षाकी अग्नि भडकी, अरु ऐसें कहने लगाकि-मेरेसें अधिक और सर्वज्ञ कौन है ? में आज इसका सर्वज्ञपणा उडा देता हुँ ?
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