________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
१०३
सागीरूप सर्व जगे दिखलाकर लोकोंकों कहो, कि रामकृष्ण दोनुं हम अविनाशी पुरुष हैं । और स्वेच्छा बिहारी हैं । जब लोकोंकों यह सत्य प्रतीत हो जावेगा तब अपना सर्व अपयश दूर हो जावैगा । यह श्रीकृष्णजीका कहना सर्व श्री बलभद्रजीनें अंगीकार किया । और भरतखंडमें आकर कृष्ण, बलभद्र, दोनुंका रूप करके सर्व जगे विमानारूढ दिखलाया, और ऐसे कहने लगा, कि अहोलोको तुम कृष्ण, बलभद्र, अर्थात् हमारे दोनोकी सुंदर प्रतिमा बनाकर, ईश्वरकी बुद्धीसें बडे आदरसें पूजो, क्यों कि हमही जगत रचनेवाले, और स्थिति संहारके कर्त्ता हैं, और हम अपनी इच्छा स्वर्ग (वैकुंठसें ) चले आते है । और द्वारिका हम
ही रचीथी, तथा हमनेंही उसका संहार करा है, क्यों कि जब हम, वैकुंठमें जानें की इच्छा करते हैं, तब अपना सर्व वंश द्वारिका सहित दग्ध करके चले जाते हैं । हमारे उपरांत और कोई अन्य कर्त्ता, हर्त्ता, नही है । ऐसा बलभद्रजीका कहना सुनके प्राये केड़ग्राम, नगरके लोक कृष्ण बलभद्रजीकीप्रतिमा सर्व जगे बनाकर पूजनें लगे, तब अपनी प्रतिमाकी भक्ति करनेवालोंकों बलभद्रजीनें बहुत धनादिक सुख देके आनंदित किए। इसवास्ते बहुतसे लोक हरिभक्त हो गए । जबसें भक्त हुये तबसें पुस्तकों में श्रीकृष्णजीको पूर्णब्रह्म परमात्मा ईश्वरादि नामोसें लिखाहे लोकिकमें श्रीकृष्ण होयेकों पांच हजार वरष कहते है, इससे क्या जानें जबसें बलभद्रजीनें कृष्णजी की पूजा करवाई, तबसें ही लोकोंनें
For Private And Personal Use Only