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बडा भक्त अविरति सम्यग् दृष्टि श्रावक हुवा । अंतमें सर्व एक हजार वरपका आयुष्य पूरण करके तीसरी नरक पृथ्वीमें उत्पन्न भया । और बलदेवका उज्जल वर्ण, सरीरप्रमाण १० धनुष हुवा । जब द्वारकानगरी, यादवोंका क्षय हुवा, और अपना भाई श्रीकष्णका कौसंबवनमें जराकुमरके हाथसें मरण हुवा देखके, वैराग्यसें संसारको असार जाणके, शुद्धभावसे चारित्र ग्रहण किया । क्रमसें सोवर्ष चारित्र पालके, सर्व १२०० वरषको आयुष्य पूरण करके, पांचमा ब्रह्मदेवलोकमें देवतापणे उत्पन्न भया । आवती चौवीसीमें बारमा, चौदमा तीर्थकरहोके दोनुं मोक्ष जावेंगे ॥ ये कृष्ण, बलभद्र, जगतमें बहुत प्रसिद्ध है । क्योंकि बहुतसे लोक श्रीकृष्ण वासुदेवकों साक्षात् ईश्वर तथा ईश्वरका अवतार, जग तका कर्ता मानते है । सो यह बात श्रीकृष्ण वासुदेवके जीते हुये न हुई, किंतु उनके मरे पीछे लोक कृष्ण वासुदेवकों ईश्वरावतार मानने लगे हैं ॥ तिसका हेतु श्री वेसठसलाका पुरष चरित्रमें ऐसें लिखा है । कि जब कृष्ण वासुदेवनें कौसंबवनमें शरीरछोडा, तब कालकरके तीसरी बालुकाप्रभा पृथ्वी (पातालमें ) गये, और बलभद्रजी एकसौ वर्ष जेन दिक्षा पालके पांचमा ब्रह्मदेवलोकमें देव हुये, उहां अवधि ज्ञानसें अपना भाई श्रीकृष्णकों पातालमें तीसरी पृथ्वीमें देखा । तव भाईके स्नेहसें वैक्रिय शरीर बनाकर श्रीकृष्णकेपास पोहचा और श्रीकृष्णसें आलिंगन करके कहा । कि में बलभद्र नामा तेरे पिछले जन्मका भाई हूं, में काल करके पांचमा
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