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Achan
अधिकार देखना होय तो पद्मचरित्र ओर पार्श्वनाथचरित्रसें जाण लैना ॥ इति आठमा वासुदेव, बलदेव दृष्टांतम् ॥
॥ अथ ९ मा कृष्ण वासुदेवः, बलभद्र, बलदेवः, २२ मा श्री नेमिनाथ भगवान्के वारे, शोरीपुर नामा नगरमें, समुद्रविजयजी नामें राजा, जिसका छोटा भाई वसुदेवजी हुवा, जिसके पूर्व नियाणेंके योगसे ७२ हजार स्त्रीयों हुई, जिसमें मुख्य देवकी नामें राणी, जिसकी कूखसें सातमा देवलोकसें आया हुवा सात स्वप्ना सूचित कृष्ण नामें पुत्र हुवा । और दूसरी रोहणी नामें राणी । जिसकी कूखसे चार खन्ना सूचित बलभद्र नामें पुत्र हुवा, इन दोनुंकों कंसके भयसें वसुदेवजीने अपना गोकुलमें, नंद गोवालियेके घरे, कितनेक वरष छिपे हुवे रक्खे । जब ये दोनुं युवानावस्थाको प्राप्त भये । तब प्रथम तो अपना भाइयोंकों मारनेवाला, कंसकों वैरी जानके मल्ल अखाडेमें आयके, कंसकों मारा, जब यादव लोक बहुतसे भयकों प्राप्त हुवे, कि कंसका सुसरा जरासिंध प्रति वासुदेव अभी सर्वमें मोटा राजा है, इससें कदाच यादवोंको क्षय नहिं कर देवै, इस भयसें शोरीपुर, तथा मथुरा नगरीसें, यादव सर्व निकल के पश्चिम समुद्रके किनारै जायके, उहां द्वारिका नगरी बसायके कितनेक वरष सुखसे रहा । पीछे जब जरासिंध अपनी सेना लेके युद्ध करनेकों आया। तब कृष्ण बलभद्र युद्ध में जरासिंधप्रतिवासुदेवकों मारके, नवमा वासुदेव, बलदेव हुवा । इसमें वासुदेवका श्यामवर्ण, सरीरप्रमाण १० धनुष हुवा । ये, श्रीनेमिनाथस्वामीका
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