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Achan
सातमाका नीलावर्ण, सरके, पांचमी देखके, वैराग्यसार वरपका
पायके, सर्व ८५ हजार वरषका आयुष्य पूरण करके सिद्धिगतिमें गया ॥ इति छठा वासुदेव बलदेव दृष्टांतम् ॥
अथ ७ मा दत्त वासुदेवः नंदन बलदेवः ॥ १८ मा तीर्थकरके वारे, वणारसीनामा नगरीमें, अग्निसिंहनामें राजा हुवा । जिसके सेसवतीनामें पट्टराणी, उसकी कूखसें, पहला देवलोकसें आया हुवा, सात स्वमा सूचित दत्तनामें पुत्र हुवा ।
और दूसरी जयंती नामें राणी जिसकी कूखसें चार खप्ना सूचित नंदननामें पुत्र हुआ, ये दोनुं जब युवान अवस्थाकों प्राप्त भये, तब अपना वैरी प्रह्लादनामा प्रतिवासुदेवकों चक्ररत्नसें मारके, सातमा वासुदेव बलदेव, हुये । तीन खंडमें राज्य किया । इसमें वासुदेवका नीलावर्ण, सरीर २६ धनुष हुआ। अंतमें ५६ हजार वरषका आयुष्य पूरण करके, पांचमी नरकपृथ्वीमें गया । औरनंदन बलदेव, अपना भाईका मरण देखके, वैराग्यसें चारित्र ग्रहण किया । क्रमसें केवल ग्यान पायके सर्व ६५ हजार वरपका आयुष्य पूरण करके मोक्ष गया इति सातमा वासुदेव बलदेव दृष्टांतम् ॥
॥ ८ मा लक्षमणवासुदेवः, रामचंद्र बलदेवः॥ . २० मा तीर्थंकर श्री मुनिसुव्रत स्वामीकेवारे, अयोध्यानामा नगरीमें, दशरथनामें राजा हुवा, जिसके सुमित्रानामें पट्टराणी, उसकी कूखसें तीसरा देवलोकसें आया हुवा, सात स्वमा सूचित लक्षमणनामें पुत्र हुवा । और दूसरी अपराजिता नामें राणी जिसकी कूखसे चार स्वप्ना सूचित रामचंद्र नामें पुत्र हुवा । ये दोनुं जब
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