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पूरण करके, छठी नरक पृथ्वीमें गया । और भद्र रलदेवका उझल वर्ण, शरीरप्रमाण ६० धनुषभया, अंतमें चारित्र अंगीकार करके, केवल ग्यान पायके, सर्व ६५ लाख वरषको आयुष्य पूरण करके मोक्ष गया ॥ इति तीसरा वासुदेव, बलदेव दृष्टांतम् ।। ॥ अथ ४ मा पुरषोत्तम वासुदेवः, सुप्रभु बलदेवः॥
१४ मा तीर्थकरके वारे, वारवई लामा नगरीमें, एक सोम नामें राजा हुआ। जिसके सीता नामें पट्टराणी, उसकी कूखसें ८ मा देव लोकसें आया हुवा, ७ स्वप्ना सूचित, पुरषोत्तम नामें पुत्र हुआ। और दुसरी सुदर्शना नामें राणी, जिसकी कूखसें ४ स्वमा सूचित सुप्रभु नामें पुत्र हुआ । ये जव युवान अवस्थाकों प्राप्त भया, तब अपना वैरी, मधु नामें प्रति वासुदेवकों मारके, चोथा वासुदेव, बलदेव, इस भरत क्षेत्रमें हुआ। तीन खंडमें अखंड राज्य किया । वासुदेवका नीलावर्ण, और शरीर प्रमाण ५० धनुषका हुवा । और अंतमें ३० लाख वरषको आयुष्य पूरण करके छठी पृथ्वीमें गया । और बलदेवका उझलवर्ण शरीर प्रमाण ५० धनुष हुवा । अंतमें ५५ लाख वरषको आयुष्य पूरण करके मोक्ष गया ॥ इति चोथा वासुदेव, बलदेव, प्रति वासुदेव, दृष्टांतम् ॥
॥ अथ ५ मा पुरषसिंह वासुदेवः, सुदर्शन बलदेवः ॥ - १५ मा तीर्थकरके वारे, अश्वपुरी नामा नगरीमें, शिव नामें राजा हुवा । जिसके अम्मा नामें पट्टराणी, उसकी क्रूखसें, चोथा देवलोकसें आया हुवा, ७ खमा सूचित, पुरषसिंह
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