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॥ द्विपृष्ट वासुदेवः २ विजय बलदेवः ॥
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१२ मा तीर्थकरके बारे, द्वारामतीनामा नगर में, वंभनामें राजा, जिसके ऊमानामें पट्टराणी, जिसकी कुखमें १० मा देवलोक आयके, ७ स्वप्ना सूचित, द्विपृष्टनामें पुत्र हुवा || और दूसरी सुभद्रानामें राणी, जिसकी कूखसे ४ स्वप्ना सूचित विजय नामें पुत्र हुवा। ये क्रमसें युवान अवस्थाकों प्राप्त हुवा, तब अपना वैरी तारकनामें प्रतिवासुदेवको मारके, दूसरा वासुदेव, बलदेव हुवा। तीन खंडमें राज्य किया, वासुदेवका नीला वर्ण, देहमान ७० धनुष हुवा । अंतमें ७२ लाख वरपका आयुष्य पूरण करके, छठी नरक पृथ्वी में गया । और विजयबलदेवका उझलवर्ण, शरीरप्रमाण ७० धनुष हुवा, अंतमें शुद्धभावसें चारित्र लेके केव लज्ञान पायके ७३ लाख वरषको आयुष्य पूरण करके मोक्षमें गया ॥ इति ॥
॥ ३ स्वयंभुः वासुदेवः ३ भद्र बलदेवः ॥
१३ मा तीर्थकरके वारे, द्वारका नामा नगरीके विषे, रुद्र नामें राजा हुवा। जिसके पुहवी नामें पट्टराणी, जिसकी कुखसें, ६ ठा देवलोक आयके, ७ स्वप्ना सूचित स्वयंप्रभू नामें पुत्र हुवा | और सुप्रभा राणी ४ स्वप्ना सूचित भद्र नामका पुत्र भया । ये क्रमसें युवान अवस्थाकों प्राप्त भया, तब अपना वैरी मेरुक नामें प्रति वासुदेवको मारके, तीसरा वासुदेव बलदेव हुआ । इस भरत क्षेत्रके तीन खंडमें राज्य किया । वासुदेवका नीलावर्ण, देहमान ६० धनुष हुआ । अंतमें ६० लाख बरषका आयुष्य
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