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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कृष्णकों ईश्वरावतार माना होय, और उस समयकों पांच हजार वरष हुआ होय, तो इस वातकों पांच हजार वरष हुआ होगा। ___ इसी तरे ६३ तेसठ शिलाका पुरुषोंका दृष्टांत इहां नाममात्र लिखा है । इन सर्वका विस्तारसे संबंध देखना होय, तो श्री हेमाचार्यजी महाराजकृत तेसठ शलाका पुरषोंका चरित्रादिकसे देख लेना ॥ ___ और जितने कालमें २४ भगवान हुए हैं, उतनें कालमें इग्यारै रुद्र हुए हैं, जिनका किंचित संबंध लिखता हूं ॥ ॥अथ ११ रुद्र नाम, गति विचार लि०॥ १ श्री ऋषभदेव स्वामीके वारे, महारुद्रपरणामका धरनेवाला मीमबल नामें पहला रुद्र हुआ, अंतमें मरके सातमी नरक पृथ्वीमें गया ।। इति ॥ २ श्री अजितनाथ स्वामीके वारे जितशत्रु नामें दूसरा रुद्र हुवा, सो अंतमें मरके सातमी नरक पृथ्वीमें गया । इति २॥ ९ श्री सुविधिनाथ स्वामीके वारे, रुद्रवल नामें तीसरा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ १० मा श्रीशीतलनाथ स्वामीके वारे, विश्वानर नामें चोथा रुद्र हुआ। अंतमें छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ ११ मा श्री श्रेयांशनाथ स्वामीके वारे, सुप्रतिष्ठनामें पांचमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥ १२ मा श्री वासुपुज्य स्वामीके वारे, अचल नामें छठा रुद्र हुआ । अंतमें मरके छठी पृथ्वीमें गया ॥ इति ॥१३ मा श्री विमलनाथ स्वामीके वारे, पुंडरीक नामें सातमा रुद्र हुआ। अंतमें मरके छठी नरक पृथ्वीमें For Private And Personal Use Only
SR No.020406
Book TitleJinduttasuri Charitram Purvarddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganmalji Seth
PublisherChhaganmalji Seth
Publication Year1925
Total Pages431
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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