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ज्ञान सहित, महा तेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत, भोगावली कर्म निर्जरार्थे, विवाह कीया । राज्यपद धारण न किया । अवसर आये, लोकांतिक देवताके वचनसे, मिति मिगशर वदि १० के दिन, क्षत्रीकुंड नामा नगरमें, छठ तप करके, साल वृक्षके नीचे, एकाकीपणे दीक्षा ग्रहण करी, उस वखत चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, बहुल ब्राह्मणके घरे, परमान्न क्षीरसें हुवो। १२ वर्ष छद्मस्थपणे विहार करके, ऋजुवालका नदीपर आये, वहां छठ तप सहित, वैशाख सुदि १० के दिन, लोकालोक प्रकाशक, केवल ज्ञान उत्पन्न भया । उस बखत चतुर्निकाय देवगणका कीया भया समोसरणमें, देशना दीया ११ के दिन पावापूरिवाहिर १२ परिषदाके सन्मुख, भगवान् धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवान्के सर्व साधु १४ हजार भये। जिसमें इंद्रभूति प्रमुख ११ गणधर पद धारक भये ॥ चंदनवाला प्रमुख ३६००० सर्व साध्वी भई ॥ ७०० वैक्रिय लब्धिवंत भये ॥ ४०० वादी विरुद धारक भये ॥ १३०० अवधि ज्ञानी भये ॥ ५०० मनपर्यव ज्ञानी भये ॥ ७०० केवल ज्ञानी भये ।। ३०० चवदे पूर्वधारी भये ॥ १ लाख ५९ हजार श्रावक भये ॥ ३ लाख १८००० श्राविका भई ॥ इत्यादिक बहुतसे जीवोंका उद्धार करके, अंतसमें पावापुरी नगरीमें, छठ तपका अनशन कीया ॥ पद्माशन मुद्राई, आत्मगुणकेध्यानसें, सर्व कर्माकों खपायके, मिति कार्तिकवदि अमावशके दिन, एकाकी,
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