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वरदत्त प्रमुख १८ गणधर पदधारक हुये । यक्षणी प्रमुख ४० हजार सर्व साध्वी हुई ।। १५०० वैक्रियलब्धिवंत भये ॥ ८०० वादीविरुदपद धारक भये || १५०० अवधि ज्ञानी भये ॥। १००० मनपर्यव ज्ञानी भये || १५०० केवल ज्ञानी भये ॥ ४०० चवदे पूर्वधारी भये || १ लाख ६४ हजार श्रावक भये || ३ लाख ३६ हजार श्राविका भई ( इत्यादिक बहुतसे जीवोंका उद्धार करके अंतसमें गिरनारजी पर्वतपर, ५३६ साधुवोंकेसाथ १ मासका अनशन कीया । पद्मासन मुद्राई, आत्मगुणके ध्यानसें, सर्व कर्मां खपायके, मिति आषाढ सुदि ८ के दिन १ हजार वर्षको आयुयमान पूरण करके, सिद्धि स्थानकों प्राप्ति भये । शासनदेव गोमेध यक्ष । शासनदेवी अंबिका | राक्षस गण । महिष योनि । कन्या राशि | अंतरमान ८३ हजार ६ से ५० वर्ष, सम्यक्त पायेवाद नव भवमें मोक्ष गये | इनोंके वा रै, इनोंके चाचेका बेटा, श्रीकृष्ण नवमा वासुदेव, तथा बलभद्र बलदेव भया । और बाईशमा भगवान पीछे, तेवीसमा भगवान पहले इस अंतर १२ मा ब्रह्मदत्त ना चक्रवर्त्ति भया ॥ इति ॥
॥ अथ २३ मा श्री पार्श्वनाथस्वामी अधिकारः ॥ वणारसी नामा नगरीमें, इक्ष्वाकुवंशी, अश्वसेन नामे राजा हुवा। जिसके वामा देवीनामें पट्टराणी, जिसकी कुखमें, प्राणतनामा देवलोक चवके, मिति चैत्र वदि ४ के दिन, भगवान् उत्पन्न भये । तब मातायें, गजादि अभिशिखा पर्यंत, १४ स्वप्ना प्रगटपणें मुखमें प्रवेश कर्त्ता देखा । पीछे सर्व दिशा सुभिक्षसमें,
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