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Achar
मनसा भोजन कराके, सर्वके सन्मुख, श्री अरिष्टनेमि कुमर नाम स्थापन कीया (नाम स्थापनका यह हेतु है कि) भगवान् जब गर्भ में आया, तब मातानें अरिष्ट रत्नमय. बडा नेमी (चक्रधारा ) आकाशमें उत्पन्न स्वप्नमें देखा। तिस कारणसें अरिष्टनेमि नाम दिया । शंखके लंछनयुक्त, श्यामवर्ण, शरीरका प्रमाण १० धनुष हुवा । ३ ज्ञानसहित, महातेजस्वी, १००८ लक्षणालंकृत विवाह किये विगर कुमारअवस्थामें रहै (पीछे) काकेका बेटा श्रीकृष्ण, तथा बलभद्रनें बहुत हठ करके, मनविगर राजीमतीके साथ विवाह ठहराया । जब जान लेके भगवान् सुसराके घरे तोरणकेपास आये । उहां मारणके निमत्त बहुतसे जानवर वाडा पीजरामें भरे हुवे देखे । तब दया करके सर्व जीवां कों बंधमेंसें छोडाए । और आप पीछा घिरके दिक्षा लेनेकों तैयार भए, फेर लोकांतिक देवताके वचनसे, मिति श्रावणसुदि ६ के दिन, द्वारका नगरीके बाहिर गिरनारपर्वतपर, छठ तप करके, वेडसवक्षके नीचे, १००० पुरुषोंके साथ, दीक्षा ग्रहण करी ( उसवखत ) चोथो मनपर्यव ज्ञान उत्पन्न भयो । प्रथम छठको पारणो, वरदिन्नके घरे, परमान्नक्षीरसें हुवो । ५४ दिन छद्मस्थपणे विहार करके, फिर गिरनार पर्वतपर आये वहां अट्ठम तपसहित, आशोजवदि अमावसकेदिन, लोकालोक प्रकाशक केवलज्ञान उत्पन्नभया । उसवखत चतुर्निकाय देवगणका कीया भया समोसरणमें, १२ परिपदाके सन्मुख, भगवान धर्मोपदेश देके, चतुर्विध संघकी स्थापना करी । भगवानके १८ हजार सर्व साधुभये (जिसमें )
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